Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 109
________________ १०४ : श्रमण, वर्ष ५६, अंक ७-९ / जुलाई-सितम्बर २००४ भक्ति - संगीत समयसार, लेखक - रामजीत जैन (एडवोकेट), पुस्तक प्राप्ति स्थान - पं० ज्ञानचन्द्र जैन, साहित्य बिक्री केन्द्र, सोनागिरि, जिला- दतिया, प्रदेश, संस्करण - प्रथम २००४ ईस्वी, आकार - डिमाई, पृष्ठ ४३, मूल्य- २१ रुपये । मध्य रामजीत जैन एडवोकेट द्वारा संकलित भक्ति- संगीत समयसार मानव जीवन भक्ति एवं संगीत के महत्त्व को दर्शाता है। संगीत भी भक्ति का एक सशक्त माध्यम है। स्वयं को अपने इष्ट के प्रति पूर्णरूपेण अर्पित करना ही भक्ति है और संगीत उस अर्पण की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम । प्रस्तुत कृति में भक्ति, भक्तिभाव की वैज्ञानिकता, जिनेन्द्र भक्ति, पूजा एवं संगीत शीर्षक से लेखक ने जीवन में भक्ति और संगीत के महत्त्व को दिखाने का सफल प्रयास किया है । यत्र-तत्र प्रश्नोत्तर के माध्यम प्रकाश डाला गया है। भक्ति की सामाजिक, आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक विवेचना के साथ ही संगीत का भी विस्तृत विवेचन किया गया है। निश्चय ही यह छोटी सी पुस्तक सुधी पाठकों के लिए उपयोगी होगी। आबू तीर्थोद्धारक दण्डनायक मंत्रीश्वर विमल, लेखक - श्रीमद् विजय पूर्णचन्द्र सूरीश्वर जी म०, अनु० - सिंघी मनोहरलाल केसरीमल, प्रका० पंचप्रस्थान पुण्य स्मृति प्रकाशन, सुमंगलम् कार्यालय, १० / ३२६८-ए, काजी का मैदान, गोपीपुरा, सूरत ३९५००२, संस्करण प्रथम २००४, आकार - डिमाई, पृष्ठ१०+२३६, मूल्य १००/ - आबूतीर्थोद्धारक दण्डनायक मंत्रीश्वर विमल आचार्य पूर्णचन्द्रसूरीश्वर द्वारा लिखित गुजराती उपन्यास का हिन्दी अनुवाद है । यह एक ऐतिहासिक उपन्यास है जो मंत्रीश्वर विमल एवं उनके कार्यों पर केन्द्रित है । प्रायः यह देखा जाता है कि जो उच्च कोटि के व्यक्ति होते हैं वे अपने नाम की अपेक्षा अपने कार्यों पर अधिक ध्यान देते हैं। मंत्रीश्वर विमल भी इन्ही में से एक थे। आबू पर्वत पर निर्मित मंदिर जो ‘विमलवसही' नाम से प्रसिद्ध है, शिल्प कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। मूल गुजराती पुस्तक का सिंघी मनोहरलाल केसरीमल ने सुन्दर अनुवाद किया है। पुस्तक की भाषाशैली सरल एवं सहज ही आत्मसात् होने योग्य है । पुस्तक में कुल २६ शीर्षक हैं जो घटनाओं के साथ तारतम्य बनाए हुए हैं। ये हैं कथा प्रवेश, वनराज का वनवास, गुर्जर राष्ट्र का निर्माता, साम्राज्य का साकार होता स्वप्न, प्रतापी पूर्वजों की पुण्य परम्परा, ईर्ष्या की अग्नि, विषम बेला की विदाई, पुनरागमन के पद चिह्नों पर, विमल की वीरता : जैसा पानी तैसी वाणी, दंड के बदले दण्डनायक का पद, शक्ति त्रिवेणी का अवतरण, परिस्थितियों का पर्यावलोकन, विजीगिषा के सामने विद्वत्ता की विजय, विजय की बात : पराजय के प्रत्याघात, धारा के मनसूबे धूल-धूसरित हुए, विजय के पथ पर संग्राम सवारी, मन की मुराद मिट्टी में मिली, गुजरात की गौरव रक्षा, बुद्धिर्यस्य बल तस्य तुफान को खींचने वाली शांति, राजा मित्रं केन दृष्टं श्रुतं वा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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