Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 108
________________ साहित्य सत्कार कैसे पाएँ मन की शान्ति; लेखक - श्री चन्द्रप्रभ; प्रका० जितयशा फाउण्डेशन, ८ बी - ७, अनुकम्पा द्वितीय, एम०आई० रोड, जयपुर, राजस्थान; संस्करण - २००४, आकार - डिमाई, पृष्ठ - ९९; मूल्य - १५ श्रमण, वर्ष ५६, अंक ७-९ जुलाई-सितम्बर २००४ मनुष्य के मन की तरंग को शान्त करने का एक सफल प्रयास है श्री चन्द्रप्रभ रचित "कैसे पाएँ मन की शान्ति” नामक यह छोटी सी पुस्तक । 'गागर में सागर' की उक्ति को चरितार्थ करते हुए चन्द्रप्रभजी ने वह सब कुछ इसमें रखा है जो अन्यत्र दुर्लभ है। शब्दों की सहजता, आत्मसात् करने योग्य भाषा-शैली, स्पष्ट विचार ये सब इस पुस्तक की विशेषता है जिसे पाठक स्वयं ही अनुभव करेंगे। चिन्ता छोड़ें सुख से जीएँ, क्रोध से बचने के सरल उपाय, तनाव मुक्ति का मनोविज्ञान, कैसे बदलें अपनी आदतें, मजबूत कीजिए अन्तर्मन, दिल में जलाएँ प्रेम की रोशनी, कैसे पाएँ मन की शान्ति, हर हाल में मस्त रहें आदि शीर्षकों के माध्यम से लेखक चिन्ता, क्रोध, तनाव, दुःख, आदि से निवृत्ति पाने एवं स्वयं में आत्मबल विकसित करने के लिए प्रेरित किया है। उचित दृष्टांत के माध्यम से सारे पाठ - रोचक बन पड़े हैं । अन्त में मैं यही कहना चाहूँगा कि जिसके लिए हम सभी व्याकुल रहते हैं, जिसको पाने की हार्दिक इच्छा सभी को रहती है, वह है 'मन की शान्ति' - जो सहज ही इस पुस्तक में उपलब्ध है। डॉ० राघवेन्द्र पाण्डेय संस्कार सागर; प्रधान सम्पादक - ब्र० जिनेश मलैया, प्रका० - दिग० जैन युवक संघ, प्राप्ति स्थान- संस्कार सागर, श्री दिग० जैन पंच बालयति मंदिर, सत्यम गैस के सामने, ए० बी० रोड, इन्दौर - १०, संस्करण जुलाई २००४, आकारडिमाई, पृष्ठ- ८०, मूल्य - २५ रुपये। संस्कार सागर दिगम्बर समाज की मासिक पत्रिकाओं में से एक है। इसे आद्योपान्त पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ। यह छोटी सी पत्रिका उत्कृष्ट कोटि की है जिसमें एक ही जगह लेख, कविता, योग कैरियर सम्बन्धी, देश-विदेश की प्रमुख घटनाओं का संग्रह, प्राकृत शिक्षा आदि का अनूठा संग्रह है। साथ ही श्री विद्यासागर जी महाराज एवं उनके शिष्यों के वर्ष २००४ का चतुर्मास विवरण एवं भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ एवं उनके फोन नम्बर दिए गए हैं। हास्य तरंग, ज्ञानवर्धक स्तम्भ एवं संक्षिप्त दैनिक पंचाग भी पत्रिका में उपलब्ध है। यह पत्रिका नियमित पठन-पाठन के योग्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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