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साहित्य सत्कार : १०५
भाग्य डूबा या सौभाग्य जागा? वारिस की वेदी पर आरस की आराधना, देवनगरी के निर्माण के लिए, नाम से बड़ा काम, विमलवसही तो विमलवसही ही है। इसके साथ ही परिशिष्ट- १ में आबू तीर्थ का अंतिम जीर्णोद्धार और परिशिष्ट - २ में मंत्री विमल विषयक अप्रकट प्रशस्ति ऐतिहासिक ज्ञान से परिपूर्ण है। उपर्युक्त सारे आलेखों में अनुवादक ने भाषा-शैली का पूर्ण ध्यान रखा है जिससे यह पुस्तक अनुवाद होते हुए भी मूल उपन्यास जैसा ही प्रतीत होता है। सुधी पाठक इसे एक बार अवश्य पढ़ें ऐसा हमारा आग्रह है।
तत्त्वार्थाधिगमसूत्र (पंचम अध्याय विवेचन); उमास्वाति विरचित, सिद्धसेनगणि विरचित टीका का गुजराती अनुवाद, विवरणकार - आचार्य विक्रमसूरीश्वर जी, सम्पा० जितेन्द्र बी० शाह, प्रका० श्रुतनिधि, शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर, 'दर्शन' शाहीबाग, अहमदाबाद - ३८०००४, आकार - रॉयल, पृष्ठ - ८+५९६, मूल्य - ३५०/
उमास्वातिविरचित तत्त्वार्थाधिगमसूत्र जैन दर्शन की अमर कृति है। यह एक ऐसा गन्थ है जिसमें तत्त्व, ज्ञान, आचार, कर्म, मोक्ष आदि समस्त महत्त्वपूर्ण विषयों का विवेचन मिलता है। इस ग्रन्थ पर जितनी टीकाएँ लिखी गई हैं उतनी शायद ही किसी अन्य ग्रन्थ की लिखी गई हों। प्रस्तुत ग्रन्थ तत्त्वार्थसत्र पर सिद्धसेनगणि द्वारा की गई टीका का गुजराती अनुवाद है। इसमें सिर्फ पंचम अध्याय का विवेचन है। स्पष्ट है ६०० पृष्ठों में सिर्फ एक अध्याय पर लिखी गई टीका में शायद ही कोई पक्ष अछूता हो। कहना होगा कि इस ग्रन्थ में अजीव तत्त्व का विस्तृत विवेचन किया गया है। इसमें अजीव के भेद, द्रव्य और उसका साधर्म्य-वैधर्म्य, प्रदेशों की संख्या, द्रव्यों का स्थितिक्षेत्र, कार्य द्वारा धर्म-अधर्म और आकाश के लक्षण, कार्य द्वारा पुद्गल का लक्षण, कार्य द्वारा जीव का लक्षण, कार्य द्वारा काल का लक्षण, पद्गल के पर्याय, सत् की व्याख्या, नित्य का स्वरूप, अनेकान्त रूप का समर्थन, बन्ध की विवेचना, द्रव्य का लक्षण, गुण का स्वरूप एवं परिणाम के स्वरूप की विशद् व्याख्या की गई है। विवरणकार विक्रमसूरीश्वर जी म० सा० ने गुजराती अनुवाद में मूल भावार्थ का पूरा ध्यान दिया है। गुजराती भाषी पाठकों के लिए यह ग्रन्थ अत्यन्त ही उपयोगी है। सहज एवं सरल भाषा शैली पाठक को बार-बार ग्रन्थ को पढ़ने के लिए प्रेरित करती है। आशा है पाठक इस ग्रन्थ को एक बार अवश्य पढ़ेंगे।
- डॉ० राघवेन्द्र पाण्डेय
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