________________
13 श्रमण, वर्ष ५६, अंक ७-९ / जुलाई-सितम्बर २००४
समासोक्ति - यह गम्य औपम्याश्रित सादृश्यमूलक अर्थालङ्कार है। समासोक्ति शब्द का अर्थ है - 'समासेन (संक्षेपेण) उक्तिः' श्लेषयुक्त विशेषणों के द्वारा अप्रकृत के व्यवहार का कथन समासोक्ति अलङ्कार कहलाता है -
परोक्तिर्भेदकैः श्लिष्टैः समासोक्तिः ।
७०
नेमिदूतम् के एक पद्य में समासोक्ति अलङ्कार की सुषमा दर्शनीय है यस्यां सान्द्रानुपवनलतावेश्मसु स्वेदबिन्दून्, मुष्णन्नंगात्सुरतजनितानुज्जयन्तीं विगाह्य । कुर्वन्तीरे विगलितपटाः सेवते वारनारी:, शिप्रावातः प्रियतम इव प्रार्थनाचाटुकारी ।। ७६
यहाँ शिप्रानदी के पवन पर प्रेमी के व्यवहार का आरोप होने से समासोक्ति अलङ्कार है । नेमिदूतम् के एक अन्य पद्य में भी समासोक्ति अलङ्कार का सौन्दर्य अवलोकनीय है।
विशेषोक्ति - विशेषोक्ति विरोधमूलक अर्थालङ्कार है । ध्वनि प्रस्थापन के परमाचार्य मम्मट ने कहा है कि सम्पूर्ण कारणों के होने पर भी फल (कार्य) का कथन न करना विशेषोक्ति अलङ्कार होता है -
विशेषोक्तिरखण्डेषु कारणेषु फलावचः । ७८
नेमिदूतम् में दो स्थलों पर ७९ विशेषोक्ति अलङ्कार स्पष्टतः परिलक्षित होता है। उदाहरणार्थ प्रतीप अलङ्कार के प्रसङ्ग में उद्धृत पद्य 'उद्यद्वालव्यजन'८० में काशपुष्पसमूह, श्वेतकमल समूह तथा राजहंसों की शोभा का दर्शन, स्मरण का कारण है तथापि स्मरणरूप कार्य के न होने से विशेषोक्ति अलङ्कार की सृष्टि हुई है।
व्यतिरेक - व्यतिरेक गम्य औपम्याश्रित सादृश्यमूलक अर्थालङ्कार है । साहित्यदर्पणकार कविराज विश्वनाथ ने इसका लक्षण इस प्रकार प्रस्तुत किया है आधिक्यमुपमेयस्योपमानान्न्यूनताथ वा। ८१
-
अर्थात् उपमान से उपमेय का आधिक्य अथवा उपमान से उपमेय की न्यूनता का वर्णन होने पर व्यतिरेक अलङ्कार होता है।
कवि विक्रम द्वारा किये गये व्यतिरेक अलङ्कार के प्रयोगों में सहृदयहृदयाह्लादकता है। एक पद्य द्रष्टव्य है -
है।
त्वद्रूपेणापहृतमनसो विस्मयात्पौरनार्यः,
सौन्दर्याधः कृत-मनसिजो राजमार्गं प्रयाति । ८२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org