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श्रमण, वर्ष ५६, अंक ७-९/जुलाई-सितम्बर २००४
सागरचन्द्रसूरि सोमसुन्दरसूरि साधुलाभ चारुधर्म समयकलशगणि सुखनिधान मोहन (वि० सं० १६६४ में शाम्ब-प्रद्युम्नचौपाई के प्रतिलिपिकार)
वि०सं० १७३८ में सीतारामचौपाई के प्रतिलिपिकार यशोलाभगणि भी सागरचन्द्रसूरिशाखा से ही सम्बद्ध थे। यह बात उनके द्वारा लिखी गयी उक्त ग्रन्थ की प्रतिलिपि की प्रशस्ति १ से ज्ञात होती है। सागरचन्द्रसूरिशाखा के
सुखनिधान पं० गुणसेन
यशोलाभगणि (वि०सं० १७३८ में सीतारामचौपाई के प्रतिलिपिकार) देवतिलक उपाध्याय के प्रशिष्य और विजयराज उपाध्याय के शिष्य मुनिकनकसार ने वि०सं० १६२८ में उत्तराध्ययनसूत्र की प्रतिलिपि१२ की। इसकी प्रशस्ति में इन्होंने अपने गुरु-प्रगुरु, गुरुभ्राताओं आदि का नामोल्लेख किया है, जो निम्नानुसार है -
सागरचन्द्रसूरि महिमराज दयासागरगणि ज्ञानमंदिरगणि देवतिलक उपाध्याय
विजयराज उपाध्याय पं० पद्ममंदिर मुनि पं० कनकसार मुनि पं० कर्मसारमुनि पं० मेहाजल (ऋषिमंडलटीका (वि०सं० १६२८ में उत्तराके रचनाकार) ध्ययनसूत्र के प्रतिलिपिकार)
इस प्रकार विभिन्न प्रशस्तिगत उक्त छोटी-छोटी गुर्वावलियों के समायोजन से इस परम्परा की एक तालिका संगठित की जा सकती है, जो इस प्रकार है : द्रष्टव्यतालिका - १
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