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खरतरगच्छ - सागरचन्द्रसूरिशाखा का इतिहास : ९१
१२. संवत् १६२८ वर्षे आषाढ़ सुदि प्रतिपत्तिथौ शनिवारे पुष्यनक्षत्रे श्रीमज्जेसलमेरौ।
यादवान्वयमुकुटमणिराउलश्रीहरिराजविजयराज्ये। श्रीबृहत्खरतगच्छे। श्रीजिनचंद्रसूरीशे विजयिनि श्रीमत्सागरचंद्रसूर्याचार्य श्री महिमराजगणिबंधुराणं। शिष्य वा० दयासागरगणिसिंधुराणां शिष्य ज्ञानमंदिरगणिधुरंधरणां प्रवर प्राथमकल्पिकानल्यगुणरत्नरोहणाद्रि श्रीश्रीदेवतिलकोपाध्यायपुरहूतदंतावलानां विनेयामेयगुणश्रीविजयराजोपाध्यायदिग्गजानां पं० पद्ममंदिरमुनि पं० कनकसारमुनि पं० कर्मसारमुनि पं० मेहाजल चिरंचीवी रिणमल्ल पं० किसना प्रमुखसारपरिवार-परिवृत्तानां : शैष्येण पं० कनकसारमुनिना श्रीमदुत्तराध्ययन सूत्रदीपिका लिलिखे।।
Muni Punyavijaya, पूर्वोक्त, पृष्ठ ३०२-३०३. १३. देसाई, जैन गूर्जरकविओ, भाग ३, द्वितीय संस्करण, संपा० - डॉ० जयन्त
कोठारी, पृष्ठ ११०. १४. वही, भाग ४, द्वितीय संस्करण, पृष्ठ २४५. १५. वही, भाग ३, पृष्ठ १५०. १६. वही, भाग २, पृष्ठ ३३४. १६अ. श्रीप्रशस्तिसंग्रह, भाग २,, प्रशस्ति क्रमांक ७२८, पृ० १८४. 17. Muni Punya Vijaya, पूर्वोक्त, प्रशस्ति क्रमांक २०४९, पृष्ठ ३४९. १८.जैनगूर्जरकविओ, भाग २, द्वितीय संस्करण, पृष्ठ ३२५. १९. संवत् १७३७ वर्षे वर्षे वर्षाऋतौ --------- ॥ श्रीसागरचंद्रसूरिशाखायां
पट्टानुक्रम श्रीश्रीश्रीरायचंद्रगणिवाचक प्रसरति यशः। श्रीवा० जयनिधानगणिशिष्य पण्डितोत्तम कमलसिंहगणिशिष्य श्री वा० कमलरत्नगणि तदनुशासनशिष्य पं० नयनानंदमुनिपठनहेतवे।। शुभं भवतु।। श्रीश्रीश्री भट्टारक श्रीजिननकुशलसूरि तत्प्रसादाल्लिखितमस्ति। श्रीखरतरगच्छीय।।।
Muni Punya Vijaya - पूर्वोक्त, प्रशस्ति क्रमांक १७४६, पृष्ठ ३२१. २०. देसाई जैनगूर्जरकविओ, द्वितीय संस्करण, भाग २, पृष्ठ ५६. २१.महोपाध्याय विनयसागर, मणिधारीजिनचन्द्रसरि अष्टमशताब्दीस्मृति ग्रन्थ,
भाग २, खरतरगच्छीय साहित्य सूची, दिल्ली १९७२ ई०, पृष्ठ ३६. 22. Vidhatri Vora, Catalogue of Gujarati Mss : Muni Shree Punya
Vijaya Ji's Collection, L.D. Series No. 71, Ahmedabad 1978
A.D. P- 614. २३. देसाई, जैनगुर्जरकविओ, द्वितीय संस्करण, भाग ४, पृ० २११. २४.अमृतलाल मगनलाल शाह, संपा० श्री प्रशस्तिसंग्रह, भाग २, प्रशस्तिक्रमांक
३५६, पृष्ठ ९८.
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