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खरतरगच्छ - सागरचन्द्रसूरिशाखा का इतिहास : ८९
सागरचन्द्रसूरिशाखा की पूर्वोक्त तीनों तालिकाओं में उल्लिखित मुनिजनों से ज्ञानप्रमोदगणि, गुणनन्दनगणि, समयमूर्तिगणि आदि में परस्पर क्या सम्बन्ध था, यह ज्ञात नहीं हो पाता। ठीक यही बात वि० सं० १६८१ में रामकृष्णचौपाई२३ के प्रतिलिपिकार पं० हरचन्द्र और उनके गुरु भुवन विशालगणि तथा वि०सं० १५९८ में घडसीसर में विजयचन्द्रकेवलीचरित्र के प्रतिलिपिकार मनिसभगमेरु,२४ उनके गुरु उदयतिलक गणि तथा प्रगुरु शिवदेवगणि के बारे में भी कही जा सकती है। सन्दर्भ: १. भंवरलाल नाहटा एवं महोपाध्याय विनयसागर, संपा० खरतरगच्छ दीक्षा नन्दी
सूची, प्राकृत भारती, पुष्प ६७, जयपुर १९९० ई० स०, पृष्ठ २३. २. अगरचन्द नाहटा, भंवरलाल नाहटा, संपा० बीकानेरजैन लेख संग्रह, परिशिष्टि
'च' पृष्ठ ३९. २अ.यह सूचना महो० विनयसागर जी से प्राप्त हुई है, जिसके लिये लेखक उनका
हृदय से आभारी हैं। ३. नारचन्द्रज्योतिषसारटिप्पण के रचनाकार सागरचन्द्र और जिनराजसूरि के शिष्य
सागरचन्द्र को अगरचन्द जी नाहटा ने एक ही व्यक्ति माना है, परन्तु पर्याप्त
प्रमाणों के अभाव में नाहटा जी का उक्त मत ग्राह्य प्रतीत नहीं होता। ४. संवत् १५१० वर्षे श्रीखरतरगच्छे श्री सागरचन्द्रसूरिशाखायां वा महिमराजगणि
तत्शिष्य पं० दयासागरगणिना लिखिता श्रीपट्टने। Muni Punya Vijaya, Ed. New Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts: Jesalmer CollectionL.D. Series No. 36, Ahmedabad
- 1972, No. 1452, P. 300. ५. संवत् १५१४ वर्षे माघ मासे १३ दिने श्रीखरतरगच्छे श्रीसागरचन्द्रसूरि शिष्य
वा० महिमराजगणि तच्छिष्य वा० दयासागरगणिना समलेखि ग्रंथोऽयं।
Muni Punya Vijaya, Ibid, P-306, No. - 1534. 6. A.P. Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss. Muni Shree
Punya Vijayajis Collection, Vol. I, L.D. Series No. 2, Ahmedabad
1962, No. 1058, P. 306. ७. श्रीवर्धमानजिन सं० २०३४ वर्षे विक्रमसंवत् १५४६ वर्षे श्रीखरतरगच्छे
श्रीसागरचन्द्राचार्यान्वये वा० महिमराज गणीनां शिष्य वा० दयासागरगणीनां वि०वा० ज्ञानमंदिरगणीनां समीपे शि० देवतिलकेन वाचिता किंचिच्छोधिता च श्रीजंगलदेशे श्रीबीकानयरे श्रीलूणकर्णराज्ये।। Muni Punya Vijaya, पूर्वोक्त, पृष्ठ ३१६, प्रशस्ति क्रमांक १६७८.
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