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(वि०सं० १५१० में ओघनियुक्ति के एवं
वि०सं० १५१४ में षट्स्थानकप्रकरणवृत्तिसह के प्रतिलिपिकार)
(वि०सं० १५६२ में बीकानेर में पिण्डनियुक्ति के संशोधक) (वि० सं० १५६६ में अपने शिष्य देवतिलकगणि के वाचनार्थ सूत्रकृतांग एवं उसकी नियुक्ति के प्रतिलिपिकार)
(वि०सं० १५६१ प्रश्नव्याकरणसूत्र एवं १५६४ में संघपट्टक वृत्तिसह के संशोधक)
विजयराज उपाध्याय
कनकसारमुनि
(वि०सं० १६२८ में उत्तराध्ययनसूत्रदीपिका की प्रतिलिपि की) इनके अन्य गुरु भ्राताओं का भी इस प्रशस्ति में उल्लेख है।
तालिका - १ जिनसमुद्रसूरि
आचार्य सागरचन्द्रसूरि
महिमराज
1 दयासागरगणि
वाचक ज्ञानसागरगणि
देवतिलक
उपा० हर्षप्रभ
T
हीरकलश
(वि० सं० १६०८ या १६१८ में मुनिपतिचरित्र के कर्ता)
सोमसुन्दर
|
साधुलाभ
चारुधर्म
समयकलशगणि
सुखनिधान
पं० गुणसेन
I
यशोलाभगणि (वि०सं० १६३८ में सीतारामचौपाई के प्रतिलिपिकार)
रत्नकीर्ति
| समयभक्त
पुण्यनन्दि
(वि० सं० १५३० ५२ के मध्य रूपकमाला के रचनाकार)
मोहन
(वि० सं० १६६४ में शाम्बप्रधुम्न
चौपाई के प्रतिलिपिकार)
खरतरगच्छ -
सागरचन्द्रसूरिशाखा
का इतिहास
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