Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 79
________________ ७४ : श्रमण, वर्ष ५६, अंक ७-९/जुलाई-सितम्बर २००४ अनुमान - अलङ्कारसर्वस्वकार रुय्यक के अनुसार अनुमान तर्कन्यायमूलक अर्थालङ्कार है। आचार्य विश्वनाथ ने हेतु के द्वारा साध्य के चमत्कारपूर्ण ज्ञान को अनुमान अलङ्कार कहा है - अनुमानं तु विच्छित्त्या ज्ञानं साध्यस्य साधनात्।९८ नेमिदूतम् के पूर्वोद्धृत पद्य ‘एणांकाश्मावनिषु... नैशो मार्ग: सवितुरुदये सूच्यते कामिनीनाम्।।'९९ में हेतु (केशपाश से गिरे हुए पुष्प, लोध्रपुष्पहार तथा चरणचिह्न) के द्वारा साध्य (नैशमार्ग) का चमत्कारपूर्ण ज्ञान होने से अनुमान अलङ्कार है। परिकर - परिकर गम्य औपम्याश्रित सादृश्यमूलक अर्थालङ्कार है। इसकी परिभाषा साहित्यदर्पणकार ने इन शब्दों में प्रस्तुत की है - उक्तैर्विशेषणैः साभिप्रायैः परिकरो मतः।१०० अर्थात् कहे हुए विशेषण यदि विशेष अभिप्राय का बोधन करते हों तो परिकर अलङ्कार होता है। नेमिदूतम् के निम्नांकित काव्यांश में परिकर अलङ्कार का लावण्य स्पष्टतः परिलक्षित होता है - वक्तुं धीरः स्तनितवचनैर्मानिनी प्रक्रमेथाः।।१०१ 'हे संग्राम में धीर! अब जैसे यह राजीमती उसी विरहजन्य दीनता को छोड़े, वैसे इससे सत्य एवं गम्भीर वचनों से वक्तव्य प्रारम्भ करो।' यहाँ 'धीर' पद की योजना का अभिप्राय यह है कि नेमिनाथ राजीमती को भलीभाँति समझायें, क्योंकि स्त्रियाँ स्वभावत: भीरु होती हैं। तब जो स्वयं 'धीर' नहीं होगा वह दूसरे को धैर्य कैसे बँधायेगा? भाविक - भाविक गूढार्थप्रतीतिमूलक अर्थालङ्कार है। आचार्य विश्वनाथ के अनुसार भूत या भविष्यत् किसी अद्भुत पदार्थ को प्रत्यक्षवत् अनुभव करने पर भाविक अलङ्कार होता है - अद्भुतस्य पदार्थस्य भूतस्याथ भविष्यतः॥ यत्प्रत्यक्षायमाणत्वं तद्भाविकमुदाहृतम्।१०२ उदाहरणार्थ नेमिदूतम् के, उदात्त अलङ्कार के प्रसंग में उद्धृत पद्य 'अत्रात्युग्रैः किल०१०३ में, अवन्ति नगरी की भूतकालीन अद्भुत घटनाओं का प्रत्यक्षवत् वर्णन होने से, भाविक अलङ्कार है। अतिशयोक्ति - अतिशयोक्ति अध्यवसायमूलक अभेद-प्रधान अर्थालङ्कार है। इसमें लोकमर्यादा का उल्लंघन करने वाली उक्ति (अतिशय+उक्ति) होती है। विश्वनाथ कविराज का कथन है कि 'अध्यवसाय' के सिद्ध हो जाने पर अतिशयोक्ति अलङ्कार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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