Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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नेमिदूतम् का अलङ्कार-लावण्य : ७९
सफल रहा है। यही कारण है कि अपने अलङ्कृत काव्यशिल्प द्वारा नेमिदूतम् ने दूतकाव्यपरम्परा में महती प्रतिष्ठा एवं प्रशंसा अर्जित की है। सन्दर्भग्रन्थ-सूची
नेमिदूतम् (कविविक्रम), प्रधानसम्पादक - डॉ० सागरमल जैन, व्याख्याकारधीरेन्द्र मिश्र, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी १९९४ ई०।
काव्यप्रकाश (मम्मट), व्या० - आचार्य विश्वेश्वर, ज्ञानमण्डल लि०, वाराणसी १९६० ई०।
साहित्यदर्पण (विश्वनाथ), व्या० - शालिग्रामशास्त्री, मोतीलाल बनारसी दास, दिल्ली १९८६ ई०।
अलङ्कारसर्वस्व (रुय्यक), सम्पा० - रामचन्द्र द्विवेदी, मोतीलाल बनारसी दास, दिल्ली।
मेघदूतम् (कालिदास), व्या० - रमाशंकर त्रिपाठी, वि०वि० प्रकाशन, वाराणसी १९८१ ई०।
जैनमेघदूतम् (अंचलगच्छीय आचार्य मेरुतुङ्ग), सम्पा० - डॉ० सागरमल जैन, व्या० - डॉ० रविशंकर मिश्र, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोधसंस्थान, वाराणसी १९८९ ई०।
अलङ्कारदीप - डॉ० के०के० आनन्द, नूतन प्रकाशन, हाथरस १९७० ई०। सन्दर्भ : १. श्रीमन्नेमेश्चरितविशदं साङ्गणस्याङ्गजन्मा.......।। - नेमिदूतम्, १२६। २. उपकुर्वन्ति तं सन्तं येऽङ्गद्वारेण जातुचित्।
हारादिवदलङ्कारास्तेऽनुप्रासोपमादयः।। - काव्यप्रकाश, ८/६७। ३. ये वाचक-वाच्य-लक्षणाङ्गातिशयमुखेन मुख्यं रसं सम्भविनमुपकुर्वन्ति ते
कण्ठाद्यङ्गानामुत्कर्षाधानद्वारेण शरीरिणोऽपि उपकारका हारादय इवालङ्काराः। -
तदेव, ८/६७ पर वृत्ति। ४. यत्र तु नास्ति रमस्तत्रोक्तिवैचित्र्यमात्रपर्यवसायिनः। - तदेव। . ५. साहित्यदर्पण, १०/३। ६. नेमिदूतम्, २३। ७. तदेव, २८।
८. तदेव, २९॥ ९. तदेव, ३७।
१०. तदेव, ७६। ११. तदेव, १००।
१२. तदेव, २६। १३. तदेव, २७।
१४. तदेव, ४३। १५. साहित्यदर्पण, १०/११। १६. नेमिदूतम्, १७ १७. तदेव, ३०।
१८. साहित्यदर्पण, १०/८1
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