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श्रमण, वर्ष ५६, अंक ७-९/जुलाई-सितम्बर २००४
स्मरण - स्मरण सादृश्यमूलक अर्थालङ्कार है। आचार्य विश्वनाथ ने इसकी परिभाषा इन शब्दों में प्रतिपादित की है -
सदृशानुभवाद्वस्तुस्मृति: स्मरणमुच्यते।८
अर्थात् किसी सदृश वस्तु के स्मरण का वर्णन करने से स्मरण अलङ्कार होता है। स्मरण अलङ्कार की अलङ्कृति में कवि विक्रम ने विशेष रुचि नहीं ली है। नेमिदूतम् में स्पष्टत: इस अलङ्कार का एक ही प्रयोग दृष्टिगोचर होता है, जो निम्नांकित है -
पुष्पाकीर्णं पुरि सह तदा यस्त्वया राजमार्ग, यास्यत्युद्यद् ध्वजनिवसनं चन्दनाम्भरछटाङ्कम्। शौरि पीताम्बरधरमन क्ष्माधरे मेघमेनं, प्रेक्ष्योपान्तस्फुरिततडितं त्वां तमेव स्मरामि।।८९
मेघ का कृष्ण से तथा विद्युत् का पीताम्बर से सादृश्य है। अत: मेघ को देखकर कृष्ण का स्मरण होने से यहाँ स्मरण अलङ्कार है।
. अपहृति - अपहृति आरोपमूलक अभेदप्रधान अर्थालङ्कार है। इसका लक्षण करते हुए आचार्य मम्मट कहते हैं कि प्रकृत का निषेध करके जो अन्य (अप्रकृत) की सिद्धि की जाती है, वह अपहृति अलङ्कार होता है -
प्रकृतं यनिषिध्यान्यत्साध्यते सा त्वपह्नुतिः।९०
वस्तुतः अपहृति शब्द का अर्थ है छिपाना। अतः इस अलङ्कार में उपमेय को छिपाने या उसका निषेध करने का कथन आवश्यक है।
विवेच्य कृति में मात्र एक स्थान पर ही अपहृति अलङ्कार की योजना हुई है, जो इस प्रकार है -
कांक्षत्यन्यो वदनमदिरां दोहदच्छद्मनास्याः।।९१
अर्थात् बलभद्र दोहद के बहाने से द्वारिकावासिनी नारियों की मुखमदिरा को पीना चाहता है। यहाँ 'छद्माना' पद के द्वारा दोहद के स्वरूप का अपहृव किये जाने से अपहृति अलङ्कार है।
निदर्शना - निदर्शना गम्य औपम्याश्रित सादृश्यमूलक अर्थालङ्कार है। आचार्य मम्मट के अनुसार जहाँ वस्तु का असम्भव सम्बन्ध (प्रकृत की अप्रकृत के साथ) उपमा का परिकल्पक होता है वहाँ निदर्शना अलङ्कार माना गया है -
निदर्शना। अभवन् वस्तुसम्बन्ध उपमापरिकल्पकः।९२ नेमिदूतम् में निर्दशना अलङ्कार का एक प्रयोग दर्शनीय है -
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