________________
नेमिदूतम् का अलङ्कार-लावण्य : ७३
उद्यत्तापात्कुमुदमिव ते कैरविण्या वियोगा - दिन्दोर्दैन्यं त्वदनुसरणक्लिष्टकान्तेर्बिभर्ति।।९३
यहाँ ‘राजीमती की शोभाहीन मुखकान्ति चन्द्र की दीनदशा को धारण करती है' इस वाक्यार्थ का पर्यवसान ‘राजीमती की मुख-कान्ति चन्द्र के समान है' इस प्रकार उपमा में हो जाता है। अत: यहाँ निदर्शना अलङ्कार की छटा है।
पर्याय - यह वाक्यन्यायमूलक अर्थालङ्कार है। आचार्य विश्वनाथ का मत है कि जहाँ एक वस्तु अनेकों में अथवा अनेक वस्तु एक में क्रम से हों या की जायें, वहाँ पर्याय अलङ्कार होता है - __ क्वचिदेकमनेकस्मिन्ननेकं चैकगं क्रमात्।
भवति क्रियते वा चेत्तदा पर्याय इष्यते।।९४
कवि विक्रम ने केवल एक पद्य मे पर्याय अलङ्कार का नियोजन किया है, जो इस प्रकार है -
नीपामोदोन्मदमधुकरीगुञ्जनं गीतरम्यं, केका वेणुक्वणितमधुराबर्हिणां चारुनृत्यम्। श्रोत्रानन्दी मुरजनिनदस्त्वत्प्रयाणंयदिस्या-त्संगीतार्थोननुपशुपतेस्तत्रभावीसमग्रः।।९५
प्रस्तुत पद्य में भ्रमरों की गुञ्जार, मयूरध्वनि तथा मयूरनृत्य के एक वस्तु (संगीत) में होने से पर्याय अलङ्कार है
परिसंख्या - परिसंख्या वाक्यन्यायमूलक अर्थालङ्कार है। काव्यप्रकाशकार के अनुसार कुछ पूछा हुआ या न पूछा हुआ, कहाँ जाकर, जो कि उसके समान अन्य के निषेध के लिये कल्पित किया जाता है, वह परिसंख्या मानी गयी है :
किंचित्पृष्टमपृष्टं वा कथितं यत्प्रकल्पते। तादृगन्यव्यपोहाय परिसंख्या तु सा स्मृता।।९६
परिसंख्या अलङ्कार के उदाहरण के रूप में नेमिदूतम् का एक स्थल अवलोकनीय है -
व्याधिदेहान्स्पृशति न भयाद्रक्षितुः शार्ङ्गपाणे - र्मृत्योर्वात्ता श्रवणपथगा कुत्रचिद्वासभाजाम्। कामक्रीडारससुखजुषां यच्छतामर्थिकामा - न्वित्तेशानां न च खलु वयो यौवनादन्यदस्ति।।९७
इस पद्य में 'द्वारिकावासी कहीं-कहीं कथाप्रसंगादि में ही मृत्युवार्ता का श्रवण करते हैं। इससे 'रोगादि के कारण अकालमृत्यु नहीं होती' यह अभिप्राय होने से परिसंख्या अलङ्कार है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org