Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 80
________________ नेमिदूतम् का अलङ्कार - लावण्य : ७५ होता है। उपमान के द्वारा उपमेय का निगरण होने से दोनों में अभेद का जो ज्ञान होता है उसे 'अध्यवसाय' कहते हैं सिद्धत्वेध्यऽध्यवसायस्यातिशयोक्तिर्निगद्यते।। - विषयनिगरणेनाभेद प्रतिपत्तिर्विषयिणोऽध्यवसायः । १०४ - कवि ने एक स्थान पर अतिशयोक्ति अलङ्कार की अतीव रमणीय योजना की हैवाणस्याजौ हरविजयिनो वासुदेवस्य यस्यां प्राप्यासत्तिं चरति गतभीः पुष्पचापोनिरस्त्रः । यस्माद्धेला कृतयुवमनोमोहनाप्तप्रकर्षे - स्तस्यारम्भश्चतुरवनिताविभ्रमैरेव सिद्धः ॥ १०५ इस पद्य में कामदेव के धनुर्धारण का सम्बन्ध होने पर भी उसके असम्बन्ध की उक्ति से भेदकातिशयोक्ति अलङ्कार है। दृष्टान्त - दृष्टान्त गम्य औपम्याश्रित सादृश्यमूलक अर्थालङ्कार है। साहित्यदर्पणकार ने इसका निरूपण करते हुए कहा है कि दो वाक्यों में धर्मसहित वस्तु (उपमान- उपमेय) के प्रतिबिम्बन को दृष्टान्त अलङ्कार कहते हैं - दृष्टान्तस्तु धर्मस्य वस्तुनऽ प्रतिबिम्बनम् । १०६ नेमिदूतम् में एक स्थान पर स्पष्टतः दृष्टान्त अलङ्कार का विनियोग परिलक्षित होता है, जो इस प्रकार है - यन्निःश्रीकं हरति न मनस्त्वां विना यादवेन्दो, सूर्यापाये न खलु कमलं पुष्यति स्वामभिख्याम् ॥ १०७ इस काव्यांश में. 'वासगृह तथा राजीमती दोनों तुम्हारे (नेमि के) बिना श्रीरहित होकर सज्जनों का मन आकृष्ट नहीं करते हैं' उपमेयवाक्य है। - 'सूर्य के अस्त हो जाने पर कमल अपनी शोभा को धारण नहीं करता है'उपमान वाक्य है। दोनों वाक्यों में धर्मसहित उपमानोपमेय का बिम्बप्रतिबिम्ब भाव होने से दृष्टान्त अलङ्कार है। विनोक्ति - विनोक्ति गम्य औपम्याश्रित सादृश्यमूलक अर्थालङ्कार है। आचार्य मम्मट ने इसका स्वरूप इन शब्दों में प्रतिपादित किया है - विनोक्तिः सा विनाऽन्येन यत्रान्यः सन्न नेतरः । १०८ अर्थात् जहाँ दूसरे के बिना दूसरा अर्थ सुन्दर न हो अथवा असुन्दर न हो (अपितु शोभन हो ) - वह दो प्रकार की विनोक्ति होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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