Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ आवश्यकसूत्र का स्रोत एवं वैशिष्ट्य : ३३ और साथ ही विशेषावश्यकभाष्य पर एक नवीन वृत्ति की रचना की, तथापि उस वृत्ति में आचार्य हरिभद्र का नामोल्लेख नहीं किया। विशेषावश्यभाष्य पर कोट्याचार्य प्रणीत विवरण न तो अति संक्षिप्त है और न ही अति विस्तृत। १३७०० श्लोक प्रमाण वाले विवरण में निरूपित कथाएं प्राकृत भाषा में हैं। १२वीं शताब्दी में मलयगिरि ने आवश्यकसूत्र पर आवश्यकविवरण नामक वृत्ति की रचना की है। अपूर्ण रूप में प्राप्त यह विवरण मूलसूत्र पर न होकर आवश्यकनियुक्ति पर है। प्रस्तुत विवरण में समाविष्ट विवेचना की विशिष्टता यही है - आचार्य ने विशेषावश्यकभाष्य की गाथाओं “पर स्वतन्त्र विवेचन करके उनके सार को ही अपनी वृत्ति में उल्लिखित किया है। उन्होंने वृत्ति में विशेषावश्यक चूर्णिकार, आवश्यक मूल टीकाकार, आवश्यक मूल भाष्यकार, लघीयस्त्रयालंकार, अकलंकन्यायावतारवृत्तिकार प्रभृति का उल्लेख भी समाविष्ट किया है। वर्तमान में उपलब्ध १८०० श्लोक प्रमाण से सम्पन्न विवरण में 'चतुर्विशतिस्तव' नामक द्वितीय अध्ययन तक का ही विवेचन समाविष्ट है और वह भी अपूर्ण रूप में। मलधारी आचार्य हेमचन्द्र ने हरिभद्र की वृत्ति पर आवश्यकवृत्ति प्रदेशव्याख्या रची है, इनकी विशेषावश्यकभाष्य पर दूसरी वृत्ति शिष्यहिता है। इसमें उन्होंने भाष्य के समस्त विषयों को अत्यन्त सरल व सुगम दृष्टि से समझाने का प्रयास किया है। इसके अतिरिक्त जिनभट्ट, माणिक्यशेखर, कुलप्रभ, राजवल्लभ प्रभृति जैन मनीषियों ने आवश्यकसूत्र पर वृत्तियों की रचना की। इनके अतिरिक्त विक्रम संवत् ११७२ में नमि साधु ने, संवत् १२२२ में श्री चन्द्रसूरि ने, संवत् १४४० में श्री ज्ञान सागर ने, संवत् १५०० में धीरसुन्दर ने, संवत् १५४० में शुभवर्द्धनगणि ने और संवत् १६९७ में हितरुचि ने आवश्यकसूत्र पर वृत्ति की रचना की। टीका युग की समाप्ति के पश्चात् जन साधारण हेतु आगमों का शब्दार्थ करने वाली संक्षिप्त टीकाओं की रचना हई जो स्तवक व टब्बा की संज्ञा से विश्रुत हैं। १८वीं शदी में मुनि धर्मसिंह ने आवश्यक पर टब्बा की रचना की। तत्पश्चात् अनुवाद युग में आवश्यकसूत्र का अनुवाद हिन्दी और गुजराती में हुआ। प्रकाशन युग में आवश्यकसूत्र का सर्वप्रथम प्रकाशन गुजराती अनुवाद सहित सन् १९०६ में भीमसी माणेक, बम्बई से हुआ। सन् १९१६-१७ में आवश्यक भद्रबाहु नियुक्ति हरिभद्रीया वृत्ति के साथ आगमोदय समिति, बम्बई से प्रकाशित हुआ। आवश्यकसूत्र मलधारी हेमचन्द विरचित प्रदेश व्याख्या के साथ सन् १९२० में देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, बम्बई से प्रकाशित हुआ। सन् १९२३ में विशेषावश्यक गाथानामअकारादिक्रम तथा विशेषावश्यकविषयानुक्रम आगमोदय समिति, बम्बई से प्रकाशित हुआ। आवश्यकसूत्र का गुजराती अनुवाद सहित प्रकाशन सन् १९२४-२७ तक आगमोदय समिति बम्बई से हुआ। सन् १९२८ में आवश्यकसूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130