Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 72
________________ नेमिदूतम् का अलङ्कार-लावण्य : ६७ इसी प्रकार समीक्ष्य कृति में ग्रन्थकार ने अन्यत्र भी काव्यलिङ्ग अलङ्कार के प्रयोग किये हैं,५७ जो अतीव भावप्रवण हैं। प्रतीप - प्रतीप लोकन्यायमूलक अर्थालङ्कार है। इसका विवेचन करते हुए आचार्य विश्वनाथ ने स्पष्ट किया है कि प्रसिद्ध उपमान को उपमेय बनाना या उसको निष्फल बताना प्रतीप अलङ्कार कहलाता है - प्रसिद्धस्योपमानस्योपमेयत्वप्रकल्पनम्। निष्फलत्वाभिधानं वा प्रतीपमिति कथ्यते।।५८ प्रतीप अलङ्कार के विन्यास में नेमिदूतकार सिद्धहस्त हैं। इस काव्य के अनेक पद्यों में प्रतीप अलङ्कार का चमत्कार विद्यमान है, यथा - शोभासाम्यं कलयति मनाग्नालका नाथ यस्याः, बाह्योद्यानस्थितहरशिरश्चन्द्रिका-धौतहा।।५९ यहाँ द्वारिकापुरी की कान्ति की तुलना में कुबेर की अलकापुरी को तुच्छ बतलाया गया है। कुर्वत्रब्दः किल कलुषतां मार्गणैः प्रागरीणां, धरापातैस्त्वमिव कमलान्यभ्यवर्षन्मुखानि।।६० 'जहाँ मेघ कमलों पर उसी प्रकार मूसलाधार वर्षा करेगा जैसे कि तुमने (नेमिनाथ ने) पहले शत्रुओं के मुखों पर बाणवर्षा की थी' इस वाक्यार्थ में प्रसिद्ध उपमान (मेघवृष्टि) को उपमेय बनाया गया है। अत: यहाँ प्रतीप अलङ्कार की शोभा विद्यमान है। इसी प्रकार निम्नोद्धृत पद्य में प्रसिद्ध उपमानों - काशपुष्प समूह, श्वेतकमलसमूह तथा शरत्कालीन राजहंसों की शोभा को उपमेय; अथ च नेमिनाथ के पार्श्वभाग में डुलाये जाते हुए चँवरों, उनके श्वेत छत्र और निर्मल यश को उपमान बनाकर प्रस्तुत किया गया है - उद्यद्वालव्यजनमनिलोल्लासिकासप्रसूना:, श्वेतच्छत्रं विकसितसिताम्भोजभाजो विलोक्य। तस्यां पौरा विशदयशसं न श्रियः शारदीना, नाध्यास्यन्ति व्यपगतशुचस्त्वामपि प्रेक्ष्यहंसाः।।६१ अर्थापत्ति - अर्थापत्ति वाक्यन्यायमूलक अर्थालङ्कार है। आचार्य विश्वनाथ ने अर्थापत्ति का लक्षण इन शब्दों में प्रस्तुत किया है - दण्डापूपिकयान्यार्थागमोऽर्थापत्तिरिष्यते।६२ अर्थात् 'दण्डापूपिका' न्याय से दूसरे अर्थ का ज्ञान होने पर अर्थापत्ति अलङ्कार होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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