Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 42
________________ श्रमण, वर्ष ५६, अंक ७.९ जुलाई-सितम्बर २००४ प्राकृत साहित्य का कथात्मक महत्त्व डॉ० हुकमचन्द जैन* मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रह कर ही वह सब कुछ सीखता है। आज के भौतिक युग में समाज में कई बुराईयां प्रचलित हैं। जुआ, चोरी, मद्य, मांस सेवन, शिकार, असत्य, हिंसा, अपरिग्रह, लोभ आदि बुराइयों से समाज विकृत हो गया है। परिणामस्वरूप मनुष्य में मानवीय प्रवृत्तियों के स्थान पर दानवीय प्रवृत्तियां जन्म लेने लगी हैं। लाभ और लोभ ने तो मानव को बारूद के ढेर पर खड़ा कर दिया है, जो कभी भी विस्फोट कर सकती है। अत: आज मानव समाज एवं देश का रक्षक नहीं भक्षक हो गया है। उसे अपने स्वार्थ के अलावा कुछ भी दृष्टिगत नहीं होता। जब उसका मन अर्थ परिग्रह से ग्रसित होता है, तब वह उचित-अनुचित किसी भी तरह से धन संग्रह करता है, अनावश्यक प्रतियोगी बन जाता है। ऐसी स्थिति में जीवन मूल्य एवं मानवीय गुण मानव से लाखों कोस दूर भटकने लगते हैं। यही दशा आज है। इन जीवन मूल्यों एवं मानवीय गुणों को स्थापित करने के लिये या जीवन में आत्मसात् करने के लिये तीर्थंकरों ने अपने उपदेशों से जीवन मूल्यों एवं मानवीय गुणों को कथाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है। प्राकृत साहित्य में ये कथायें आगम, टीकाओं, चूर्णियों एवं स्वतंत्र कथा ग्रंथों में मिलती हैं। इन कथाओं के माध्यम से ही जीवदया, करुणा, अहिंसा, अपरिग्रह, दान, शील, तप, भावना, ब्रह्मचर्य, सत्य, संयम, शरणागतवात्सल्य, प्रेम, सौहार्द्र, सहअस्तित्व आदि आदर्शों को जनसामान्य के हृदय में उतारने का प्रयास किया गया है। जीव-रक्षा का लिये व्रतों के पालन करने के लिये कहा गया है। आगम ग्रंथों में ज्ञाताधर्मकथा में मेघ कुमार के पूर्वभव के रूप में मेरुप्रभ हाथी की कथा आयी है जो अपने पांव के खजलाने के लिये ऊपर उठाता है। उस स्थान पर कई छोटेछोटे जीव आश्रय ले लेते हैं। वह जीव रक्षा की भावना के कारण स्वयं अपने प्राण त्याग देता है। ऐसी ही कथा आख्यानकमणिकोश तथा अहिंसा के महत्त्व रूप में कथारत्नकोश में यज्ञदत की कथा में आयी है। ज्ञातधर्मकथा में एक कौलिक कसाई की कथा आती है, जो हमेशा पाड़ा मारा करता है। अत्यंत पाप करने के कारण राजा उसे सूखे कुएं में धकेल देता है, * सह आचार्य एवं अध्यक्ष, जैन विद्या एवं प्राकृत विभाग, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर, (राज०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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