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नेमिदूतम् का अलङ्कार-लावण्य : ६३
'हे नाथ! पुनः वर्षाकालिक नूतन मेघ के साथ बिजली की तरह, राजीमती के साथ तुम्हारा पल भर भी वियोग न हो।' यहाँ भी पूर्णोपमा का चित्ताकर्षक लावण्य विद्यमान है।
नेमिदूतम् के निम्नांकित स्थलों पर भी पूर्णोपमा अलङ्कार का चमत्कार दृष्टिगत होता है -
• संक्रीडन्ते शिशव इव येऽङ्के समाधिस्थितस्य।२७ + शोभां शुभ्रत्रिनयनवृषोत्खातपङ्कोपमेयाम्।२८ + नीलस्निग्धे क्षणमुपगते पुण्डरीकप्रभस्या२९ । + रात्रिं संवत्सरशतसमां त्वत्कृते तप्तगात्री।३०
+ प्रावृट् प्रान्तं प्रिय! मम गता दुःखदा दुर्दशेव।३१ लुप्तोपमा -
यं दृष्ट्वैता: पथिकवदनाम्भोजचन्द्रातपाऽऽभाः, सेविष्यन्ते नयनसुभगं खे भवन्तं बलाकाः।।२२ यहाँ बगुलियों का साधर्म्य चन्द्रज्योत्स्ना से स्थापित किया गया है। प्रातस्तस्यां कुवलयदलश्यामलाङ्गे सलीला, नामोक्ष्यन्ते त्वयि मधुकर श्रेणिदीर्घान्कटाक्षान्।।३३
इस काव्यांश में नेमिनाथ के श्याम शरीर का साधर्म्य नीलकमल-पत्र से तथा उज्जयिनी की सुन्दरियों के लम्बे कटाक्षों का साधर्म्य भ्रमरपंक्ति से स्थापित किया गया है।
आकांक्षन्त्या मृदुकरपरिष्वंङ्गसौख्यानि सख्याः पश्यामुष्या मुखमनुदितं म्लानमस्मेरमश्रि। उद्यत्तापात्कुमुदमिव ते कैरविण्या वियोगा - दिन्दोर्दैन्यं त्वदनुसरणक्लिष्टकान्तेर्बिभर्ति।।३४
प्रस्तुत पद्य में राजीमती की शोभाहीन मुखकान्ति को उत्कट ताप के कारण म्लान श्वेत कुमुदपुष्पों की भाँति बतलाया गया है।
नेमिदूतम् में लुप्तोपमा अलङ्कार के अन्य भी अनेक रम्य प्रयोग मिलते हैं, यथा......आशाम्बरेण, स्निग्धश्यामाञ्जनचयरुचाऽऽसादिताभिन्नभावाः।३५ + भक्तिच्छेदैरिव विरचितां भूतिमङ्गे गजस्य।।३६ + वातोद्भूतैर्हसति सलिलैर्या शशाङ्काशुगौरैः।३७
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