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६० : श्रमण, वर्ष ५६, अंक ७-९ / जुलाई-सितम्बर २००४
शब्दालङ्कार
अनुप्रास - अनुप्रास शब्द 'अनु + प्र + आस' से मिलकर बना है। यहाँ 'अनु' का अर्थ अनुगत, 'प्र' का प्रकृष्ट तथा 'आस' का अर्थ न्यास है। अतः रस, भावादि के अनुकूल प्रकृष्ट न्यास को अनुप्रास कहते हैं। आचार्य विश्वनाथ ने अनुप्रास शब्दालङ्कार का लक्षण इस प्रकार किया है -
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अनुप्रासः शब्दसाम्यं वैषम्येऽपि स्वरस्य यत् । "
अर्थात् स्वर की विषमता होने पर भी जो शब्दसाम्य (व्यञ्जनसाम्य) होता है, वह अनुप्रास अलङ्कार कहलाता है।
अनुप्रास कवि विक्रम का अति प्रिय शब्दालङ्कार है । नेमिदूतम् में छेकानुप्रास एवं वृत्यनुप्रास का सौन्दर्य सचेतसों को वीणा की झंकार के समान मधुर अनुभूति कराता है। कतिपय काव्यांश उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं
(क) वृत्यनुप्रास
+ एतत्तुङ्ग..... शृङ्गमङ्गीकुरु, राज्यं प्राज्यं प्रणयमखिलम्......। ६ ('ङ्ग' तथा अनुस्वार की आवृत्ति) + मुष्णन्नन्तश्चिरपरिमलोद्गारसारं.......।' ('र्' की आवृत्ति) • मनसिजरसोल्लासलीलालसानाम्.. .।' ('लू' की आवृत्ति) + ...... विपुलविगलन्मालतीजालकानि ।' ('लू' की आवृत्ति)
यस्यां रम्यं सुरभिसमये सोत्सवाः सीरिमुख्याः । १° ('स्' की आवृत्ति) वृतान्तेस्मिन् तदनु कथिते मातुरस्यातयैतद्वृत्तं ज्ञातुं .....
तां तदोचे च जातं.....भ्रातरुक्तं मया यत् । ११ ('तू' की आवृत्ति) (ख) छेकानुप्रास
प्राणानव तव..... वासार्थं वः
वप्रप्रान्ते । १२
अस्मादद्रेः प्रतिपथमधः
कान्तारतरसगलद्.. | १३ - मान्यो मन्त्री.. .स्वशयविहिता सत्क्रिया.... स्यादनल्पाभ्यसूयः । १४
श्लेष - साहित्यदर्पणकार ने श्लेषालङ्कार की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए कहा
है कि श्लिष्ट पदों से अनेक अर्थों का अभिधान होने पर श्लेष अलङ्कार होता है -
श्लिष्टैः पदैरनेकार्थाभिधाने श्लेष इष्यते । १५
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कवि विक्रम ने नेमिदूतम् में श्लेष अलङ्कार का अत्यल्प प्रयोग किया है। यहाँ दो उदाहरण प्रस्तुत हैं -
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