Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 45
________________ ४० : श्रमण, वर्ष ५६, अंक ७-९/जुलाई-सितम्बर २००४ चाहने वाला ब्राह्मण करोड़ों से लेकर राजपाट तक आ गया। इसलिये लोभ की कोई सीमा नहीं है। दुष्परिणाम के रूप में कौए और मृत हाथी की कथा भी आती है। लोभ के साथ-साथ मोह जीवनमूल्य एवं मानवीय गुणों को नष्ट करने वाला है। मोह से उसकी सोच एकान्तिक हो जाती है। वह एक ही के बारे में सोचता है। ज्ञाताधर्मकथा में मल्लि की कथा एवं कुवलयमाला में वणिक्सुन्दरी की कथा आती है जिसमें वह अपने चहेते पति के मृत्यु होने पर भी उसकी लाश को छ: महीने कंधे पर लेकर घूमती रहती है। परिजनों द्वारा समझाने पर जब मोह शिथिल होता है तब उसका अंतिम संस्कार किया जाता है।२६ यही कथा पात्रों के हेर-फेर के साथ पउमचरिउ में भी आती है जिसमें राम लक्ष्मण का शव छ: महीने तक लेकर घूमते रहते हैं। देवताओं द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से समझाने पर अंतिम संस्कार किया जाता है।२७ रयणचूडरायचरियं में शंख राजा एवं विष्णुश्री की कथा है, जिसमें शव में कीड़े लगने के बाद ही दाह संस्कार किया जाता है।२८ इन्द्रियजन्य विषय-वासना आदि भी जीवन मूल्यों का ह्रास करने वाले हैं। ये वास्तव में किंपाक फल के समान हैं जो स्वाद में मधुर किन्तु प्राणनाशक होता है वैसे ही यह विषय-वासना एवं काम-भोग हैं। ऐसी प्रतीकात्मक मधु बिन्दु दृष्टांत समराइच्चकहा, कुवलयमाला आदि अनेक ग्रंथों में मिलते हैं, जिसके पीछे विषयवासना को नियंत्रण एवं उसके दुष्परिणाम समझाये गये हैं।२९ आख्यानकमणिकोश में इन्द्रियवश कथानक में उपकोशा, भद्रा, नृपसुता, सुकुमारिका आख्यान आते हैं। जिनमें विषय-वासना के दुष्परिणाम समझाये गये हैं। कथारत्नकोश में सुजम सेठ एवं उसके पुत्रों की कथा आई है।३१ कामवासनाओं के मूल में सात व्यसन हैं जैसे मद्य, मांस, जुआ, चोरी, शिकार, परस्त्रीगमन आदि। मांस-भक्षण के रूप में सोदाम नृप का कथनाक मिलता है जिसमें वह मांस-भक्षण हेतु मुनि को मारने के लिये भी तत्पर हो जाता है। किंतु अंत में राजा को ज्ञान होता है और वैराग्य की ओर अग्रसर हो जाता है।३२ आख्यानकमणिकोश में ही चोरी के रूप में नूपुर पंडित का आख्यान आता है जिसमें चोरी के दुष्परिणाम बताये गये हैं।३३ राग भी मोह को पैदा करने वाले होते हैं। आख्यानकमणिकोश में ही वणिक्पत्नीआख्यानक में अन्य प्रेमी में आसक्ति के कारण अपने पति की हत्या कर देती है। मायादित्य कथानक भी राग के दुष्परिणाम को स्पष्ट करता है।३४ इनके अलावा घमण्ड भी मानवी गुणों का ह्रास करता है। घमण्ड के दुष्परिणाम के लिये बंदर और बया की एवं घमण्डी गीदड़ की कथा है जिसमें भयंकर दुष्परिणाम भोगने पड़ते हैं।३५ इन जीवन मूल्यों के अलावा प्रेम, सौहार्द, सह-अस्तित्व, परोपकार, लोक कल्याण आदि के भाव मिलते हैं। प्रेम की अतिशयता के रूप में शकुन-शकुनी की कथा आती है। शकुन-शकुनी जमदाग्नि ऋषि की दाढी में घोंसला बनाते हैं। ऋषि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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