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५० : श्रमण, वर्ष ५६, अंक ७-९/जुलाई-सितम्बर २००४ स्थानांगसूत्र तथा अनुयोगद्वार सूत्र में उल्लिखित ‘सम-स्वर-विवेचना' को संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं। इसे 'स्वर मंडल सूत्र' के नाम से दोनों शास्त्रों में निबद्ध किया गया है। यह वर्णन हम यहाँ अनुयोगद्वारसूत्र (सूत्रकार-आर्यरक्षित, वी०नि०सं० ५९२ वि०सं० १२२) के अनुसार लिख रहे हैं। कुछेक पाठान्तरों के साथ यह संपूर्ण वर्णन स्थानांगसूत्र के सप्तम स्थान में प्राप्त होता है।
‘सात नाम' के अन्तर्गत सात स्वरों की विवेचना करते हुए अनुयोगद्वारसूत्र (पृ० १७९-१८९, व्यावर) में कहा गया है -
सत्त नामे सत्त सरा पण्णत्ता। तं जहा - सज्जे रिसभे गंधारे मज्झिमे पंचमे सरे। धेवए चेव णेसाए सत्त सारा वियाहिया।।
अर्थात् सप्त नाम के रूप में सात प्रकार के स्वरों का स्वरूप कहा गया है। ये सात स्वर इस प्रकार हैं -
षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद।
सात स्वरों के सात स्वर-स्थान : इन सात स्वरों के सात स्वर-स्थान (उच्चारण स्थान) कहे गये हैं, यथा -
जिह्वा के अग्रभाग से षड्ज स्वर का, वक्षस्थल से ऋषभ स्वर का, कंठ से गांधार स्वर का, जिहवा के मध्य भाग से मध्यम स्वर का, नासिका से पंचम स्वर का, दांतों और होठों से धैवत स्वर का, भौंहे चढ़ा कर/शिर से/मूर्द्धा से निषाद स्वर का उच्चारण होता है।
ये सातों स्वर जीव-निश्रित भी होते हैं और अजीव-निश्रित भी।
जीव-निश्रित सात स्वर : जीव-निश्रित सात स्वर इस प्रकार हैं - मयूर षड्ज' स्वर में बोलता है, कुक्कुट (मुर्गा) ऋषभ स्वर में। हंस गांधार स्वर में बोलती है और गवेलक (भेड़) मध्यम स्वर में। पुष्पोत्पत्ति काल (वसन्त ऋतु - चैत्र-वैशाख मास) में कोकिल पंचम स्वर में बोलता है। सारस और क्रौंच पक्षी धैवत स्वर में बोलते हैं तथा हाथी निषाद स्वर में बोलता है।
अजीव-निश्रित सात स्वर : मृदंग नामक बाद्य, से षड्ज स्वर निकलता है। गोमुखी बाघ से ऋषभ स्वर, शंख से गांधार स्वर, झल्लरी (झालर) से मध्यम स्वर, चार चारणों पर स्थित गोधिका से पंचम स्वर, आडम्बर (नगाड़ा, ढोल) से धैवत स्वर और महाभेरी से निषाद स्वर निकलता है।
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