Book Title: Siribhuyansundarikaha
Author(s): Sinhsuri, Shilchandrasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 708
________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अग्गुन्नयफारफणाकडप्पसंप्पा (पा) डिओब्भडवियासो । जमराएण व हत्था पसारिओ देविगहणत्थं ||७६६० || पसरतीए व निसिरक्खसीए कसिणंधयारघोराए । देवीए भक्खण जीहादंडो व नीहरिओ ।।७६६१ ।। पुरओ भविस्सदूसहगुरुतरदुक्खेहिं कडुविवाएहिं । हत्थालंबो व्व कओ उक्खिवणत्थं च देवीए || ७६६२ || बहुदुहसयगिलियाए देखावेक्खीए जायतण्हेण । गिलणत्थं गयणेण व जीह व्व पसारिया दूरं ||७६६३ || पुरओ उज्जोयंतो फुरंतफणरयणकिरिणदीवेहिं । रयणीतमपिहियं पिव देविं अवलोयइ भुयंगो ||७६६४ || पुरओ करालमुहनिग्गएण जीहाजुएण कहइ व्व । मरणं वा हरणं वा दो चेव गई तुहं अज्ज || ७६६५ ।। इय गरुयभीसणायारकालकायं सरीसिवं दठ्ठे । भयविवसवेविरंगो परिवारो तक्खणे नट्टो ||७६६६ || तो गरुयदिसागयदीहरकरसरिसकायविकरालं । दठ्ठे देवी भुयंगं अह सुंयरइ जिणनमोक्कारं ॥ ७६६७ || पंचनमोक्कारपहावपहयनीसेसभीसणाडोवो । तक्खणमेत्तेणं चिय सो भुयगो निफु ( प्फु) रो जाओ ||७६६८ || एत्यंतरंमि सहसा विज्जाबलपबलजणियघणपवणो । अंदोलंतो चंपापुरीए पासायसंघायं ॥ ७६६९॥ उच्छालियधरणीरयघणपडलनिरुद्धनहधरावलओ । अंतरियनयणपसरो वेयवसुप्पाडियदुम्मे ( मे ) हो ||७६७० || Jain Education International ६९९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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