Book Title: Siribhuyansundarikaha
Author(s): Sinhsuri, Shilchandrasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 768
________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा सोएण जणे हासो खिज्जइ देहो गलंति बुद्धीओ । संजायइ दीणत्तं पत्थुयकज्जस्स तह नासो ||८३२१ ।। कह ते कुणंति सोयं नामेण वि जाण कंपइ जयं पि? । आसु सविकमेणं हढेण देविं अरिसिरिं व १८३२२॥ जे करवालतुलाए नियजीयं तोलिऊण अप्पंति । वेण वीरचरिया ते च्चिय सायं (हं ) ति नियअत्थं ||८३२३| किं देव! इमं न मुणसि तए सदुक्खे जयं पि बहुदुक्खं ? | तुह देहे च्चिय निवसइ जम्हा भुयणं निरवसेसं ||८३२४|| तो देव ! चयसु सोयं पहीणजणसेवियं च अफलं च । कुणसु अवट्ठभं चिय पसाहियासेसकज्जत्थं' ||८३२५ ।। इय सेणाहिववयणं सोउं हरिविकुमो पयइवीरो । पच्चागयचेयन्नो परमत्थविभावओ जाओ ||८३२६ ।। 'अहह! पियावइयरवज्जवडणखणमेत्तजायपीडस्स । मह सव्वो पमु ( म्ह) ट्ठो उचियाणुचियत्तवावारो ||८३२७॥ जइ मारिसा वि एवं परोवएसारिहा भविस्संति । ता हंत! निराधारा संजाया धीरिमा भुयणे ||८३२८|| ता जुत्तं च्चिय भणिओ सेणावइणा अहं सयत्थं च । नियबलपरकुमेणं दइयत्थे हं पयट्टिस्सं ||८३२९|| जक्खेण वि मह कहियं जं जीवइ भुयणसुंदरी देवी । ता सव्वहा तयत्थं पुरिसायारं पयासेमि' ||८३३०|| इय चिंतिऊण कुमरो सेणानाहं पयंपई हिट्ठो । 'को अन्नो मज्झ हिओ तुमं विणा एत्थ भुयणंमि ? || ८३३१॥ Jain Education International ७५९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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