Book Title: Siribhuyansundarikaha
Author(s): Sinhsuri, Shilchandrasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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७९६
सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ घोलंतकन्नकुंडलकवोलपडिबिंबभासुरा देवी । जंबुद्दीव्व(व)स्स सिरि व्व विमलदोसूर-ससिजुयला ॥८७२८।। आमलयथूलमोत्तियमहल्लभारंसुथूलथणवठ्ठा । पढ़ेसुयपिहियपओहर व्व जा ससुरलज्जाए ।।८७२९।। उज्जोइयभुवणयला संचरणरणंतकंचिमणिदामा । हरिविकूमस्स कित्ति व्व सद्दरूवा परिक्कमइ ।।८७३०।। पयपंकयरायमरालमहुरसंजायनेउरारावा । गंग व्व जयपवित्ता रयणायरपिययमाभिमुही ।।८७३१।। पणमिज्जंती पुरओ अब्भुट्ठियगरुयरायवंद्रेहिं । लज्जा-पसायरसमीसतन्निहित्तच्छिसयवत्ता ॥८७३२।। पडिहारघोरहक्काससंकसंखुद्धभूमिपालेहिं । दिन्नपरिवियडमग्गा पुणरुत्तनिहित्तपियनयणा ॥८७३३।। ‘जय देवि ! कुण पसायं दिट्ठीण इओ नियच्छ नियभिच्चे' । दूरोवविठ्ठराएहिं सायरं इय नमिज्जंती ॥८७३४॥ 'देवि ! पुरो अवहारसु सुसावहाणा ठवेसु पयकमलं' । इय कयकलयलसद्दा सन्निहियपरिग्गहजणेण ।।८७३५।। आणंदजलमएहिं नीलुप्पलपत्तलद्धसोहेहिं । अग्धं व देइ रायं वहूए नियनयणवत्तेहिं ।।८७३६॥ नीसहविमुक्कसव्वंगरणिरमणिभूसणारवकरालं । नमिओ ससंभमं नववहूए अज्जि(जि)यविकूमो राया ॥८७३७।।
१.
पदपङ्कजयो राजमरालवत् सञ्जातो नुपूरारावो यस्याः, गङ्गापक्षे पयसि राजहंसास्तेषा सातो नुपूरारावो यस्याम, खंता. ||
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