Book Title: Siribhuyansundarikaha
Author(s): Sinhsuri, Shilchandrasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥
विहरतो धरणियलं अहाविहारेण एइ चंपाए । सिरिअमरसूरिणा सह ठवंति सपएस आयरियं ॥ ८९३६ ॥ नामे धम्मघोसं अमरस्स पर्यमि मंजुघोसं च । निट्ठवियअट्ठकम्मा अंतगडा केवली जाया ॥८९३७।। दोसु वि गएसु मोक्खं हरिविक्कम - अमरसेणसूरीसु । सिरिभुयणसुंदरीए केवलनाणं समुप्पन्नं ॥ ८९३८ ॥ विहरती धरणी (णि) यलं निच्छिदंती जणस्स संदेहं । मोहं च निम्महंती भुवणुवयारं च जणयंती ||८९३९ ।। पत्ता तमेव सेलं मलयगिरिं गरुयकंदरगहीरं । तं चेव तावसासमसमीवचंदप्पहजिणिदं ॥ ८९४०।। चंदसिरी विजयवई सिंगारबईयमाइअज्जाहिं । उप्पन्नकेवलाहिं सह ट्ठिया फासुयपएसे ॥८९४१॥ सिरिमलयमेहजक्खेण पूइया परमरिद्धिविहवेण । ठावइ पवत्तिणिपए सीलवइं नाम वरअज्जं ||८९४२ ।। तो केवलिपरियायं पालेउं भुयणविहियउवयारं । विरयमण-वयण-काया विसुद्ध सेलेसिकरणेण ॥ ८९४३॥ खवियभवोवग्गाहगकम्मंसा सव्वबंधणविमुक्का । सिवमलय (मयल) मक्खयसुहं मोक्खं पत्ता निराबाहं ॥। ८९४४ ।।
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एत्थ समप्पइ सिरिभुयणसुंदरी नाम वरकहा एसा । फुड - वियड-सलिल (ललि) यक्खर - गाहाहिं विणिम्मिया रम्मा ॥८९४५ ॥ [प्रशस्तिः ] इह आसि जयपसिद्धो निम्मलनाइल्लकुलसमुब्भूओ तव - सील-संजमरओ समुद्दसूरि त्ति आयरिओ ॥१॥
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