Book Title: Siribhuyansundarikaha
Author(s): Sinhsuri, Shilchandrasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text
________________
सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥
७६१
उववासिओ म्हि अज्ज य अज्ज य किण्हट्ठमी वि संजाया । ता बाहिं गंतूणं हढेण साहेमि कं पि सुरं' ||८३४३|| इय चिंतिऊण उट्ठइ कयपरियरबंधभासुरसरीरो । करकलियखग्गरयणो नियंबदिढबद्धछुरिओ य || ८३४४ || कयहारबंभसुत्तो पलंबपडपाउयंगपच्छन्नो ।
नीहरिओ भवणाओ अलक्खिओ जामइलेहिं ||८३४५|| अहिलंघियपायारो दूरं परिहरियखाइयावलओ । करणपरिहत्थदेहो पडिओ बाहिंमि दुग्गस्स ||८३४६ || तो वियडपयभरक्खेवदलिय थरहरियमहियलाभोओ । पत्तो मसाणभूमिं सहसा तिणतुलियतेलोक्को ||८३४७ || उप्पत्तिं व भयाणं सुणागारं जमस्स व दुरंतं । आगारं मरणस्स व लीलावासो व्व भूयाणं ||८३४८ || पजलंतचियाहिंतो दरदड्डुं कड्डिऊण मडयोहं । भक्खंति जत्थ भूया निबद्धघणमंडलीबद्धा ||८३४९।। दीसंति जत्थ विविहा विपणिपहा वीरमंस - वसपउरा । वेयाल-भूयरक्खसकोलाहलपयडपव्भारा || ८३५० ।। पजलंतबहुचियासयजालाकवलिज्जमाणगयणयलं । जं होइ पलयकालानलस्स उप्पत्तिबीयं व ||८३५१ ॥ जालामुहीओ जत्थ य समंसपामुक्कजलणजालाओ । चिरकवलियसपलचिया हव्ववहं उव्वमंति व्व ||८३५२ ।। जं घोरवूयघुक्काररावबहिरियनहंतराभोयं ।
छलियं व निब्भयजम्मं (मं ?) आमेलइ दीहहुंकारं ||८३५३||
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838