Book Title: Siribhuyansundarikaha
Author(s): Sinhsuri, Shilchandrasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 771
________________ ७६२ १. सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ बहु साइणिजुयइजणं रक्खस-वेयाल - भूय-नरनिविडं । सव्वं (व्विं) दियअमणोन्नं जमस्स जं रायहाणि व्व ||८३५४ || एवंविहे मसाणे गरुयं तत्थऽत्थि भैरवाययणं । तंमि कावालियाणं अत्थि महंतो मढो एगो ||८३५५ ।। तत्थऽत्थि खुद्दविज्जासिद्धिसमुब्भूय असमसामत्थो । जल-त्थ (थ) लअक्खलियगई वोमविहारी महारोद्दो ||८३५६॥ नामेण सूलपाणी तस्स य सीसोऽत्थि तस्स अमहिओ । बहुसिज्झ (द्ध) विज्जमंतो कवालधयधारओ भीमो ||८३५७ || नरहड्डखंड बहुविहभूसणविणिवेसभासुरसरीरो । खट्टंग- डमरुहत्थो सव्वंगं भूइपंडुरिओ ॥। ८३५८।। नामेण चंडरोद्दो चंडो रोद्दो जहत्थनामो सो । ते तत्थ दो वि भीमा मढंमि निवसंति गुरु- सीसा ||८३५९॥ अह हरिविकुमकुमरो तंमि मसाणे सहावभीमंमि । परियडइ अखुद्धमणो पेच्छंतो वैयरे विविहे ||८३६०|| वेयालेहिं निरुद्धं कत्थ वि विलवंतमंतिसंघायं । ते हकिऊण वीरो मेल्लावइ तं सकारुन्नो || ८३६१ ।। कयवरमंडलपूए बहुविज्जासाहणुज्जए पुरिसे । दट्ठूण नीसहाए सहायभावं कुणइ ताण || ८३६२ ।। अन्नत्थ भूय- रक्खस- पिसाय-वेयाल - साइणीनिवहं । आमुघोरहको दुन्नयकज्जाउ वारेइ ||८३६३ ।। 'किं देह रक्खसाणं अप्पाणं छिंदिउं किलीवाण ?” । इय वारिऊण वीरे (रो ? ) मणोरहे ताण पूरेइ ||८३६४ || वइयरे || Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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