Book Title: Siribhuyansundarikaha
Author(s): Sinhsuri, Shilchandrasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 777
________________ ७६८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जिण-पंचनमोक्कारप्पहाव आकर (रि) सिओ व्व सुहरासी । समुवडिओ सि सुंदर! पच्चक्खो पुरिसरूवेण' ||८४२०|| हरिविकुमेण भणियं 'साहमि (म्मि) णि ! सव्वहा न भेतव्वं । दूरं गयाई एहि भयाइं तुह जिणपहावेण ॥ ८४२१ ॥ सच्चं तुमए भणियं जिण - नवक्का (का) ररप्पहावओ अहयं । आकिट्ठो इव पत्तो तुह पयडो पुन्नरासि व्व' ||८४२२ ॥ तो भणइ चंडरुद्दो मुहकुहरविमुक्कुजलणघणजालो । ' को एस पावकम्मो महंतराए पयट्टेइ ? ||८४२३ ॥ रे रे पुरिसाहम ! सप्पगिलियसालूरियं व मोएउं । मंडूओ इव आओ मह समुहं कुद्धहिययस्स' ||८४२४|| हरिविकुमेण भणियं 'रे रे पासंडि! चंड! चंडाल ! । अपवित्तं पिव मन्ने अप्पं तुह दंसणेणाऽवि ||८४२५ ॥ कह न तुह पाव ! हिययं तड त्ति फुट्ट मणे धरंतस्स । भुयणेक्कसारनारीवहसंकप्पं परमघोरं ?' ||८४२६।। अह कावालिय-कुमराणं तव्विहं सोउमसरिसालावं । सहस त्ति सूलपाणी तिसूलहत्थो तहिं पत्तो ||८४२७|| जस्स तिसूलं सोहइ जलंतसूलग्गतिविहजालाहिं । मंताकिट्ठेहिं व जं अहिद्वेयं तिविहजलणेहिं ॥८४२८|| मुहमुकतेउलेसो चउदिसिपसरतदीहजालोली । पलयानलं किरंतो हरो व्व संहारसमयंमि ||८४२९|| तो तं तहासरूवं बाला दठ्ठे भएण कंपंती । 'परितायह परितायह' इय भणिरी कुमरमल्लिया ||८४३०|| Jain Education International For Private & Personal Use Only • www.jainelibrary.org

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