Book Title: Siribhuyansundarikaha
Author(s): Sinhsuri, Shilchandrasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 780
________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ७७१ ‘एवं' ति पभणिऊणं कोमलतूलीसणाहमत्थुरणं । अल्लियइ खणं कुमरो निद्दाभरमउलियच्छिजुओ ।।८४५३।। तो भुयणसुंदरीए पुट्ठो जक्खो ‘कहेसु मह ताय! । को अज्ज पव्वदियहो जेण उ(णु)ववासी हुओ कुमरो ? ।।८४५४।। किं वा अमणुन्नुब्भेवबहुलबहुविहअवायपेयवणे । कुमरो गओ ? असेसं साहसु, मह कोउयं गरुयं' ।।८४५५।। जक्खो भणइ 'तए च्चिय उववासा किं कया दुवेऽपव्वे ? । केण व पओयणेणं जलहिंमि पवाहिओ अप्पा ?' ।।८४५६।। बाला भणइ 'अवन्नं सोऊण इमस्स जायखेयाए । सव्वं पि मए विहियं पुव्बुत्तं नेहमूढाए' ||८४५७।। जक्खो भणइ ‘इमो वि हु निरवेक्खाए तए परिच्चत्तो । तुह नेहमोहियप्पा उववासी मरणमहिलसइ' ॥८४५८।। बाला जंपइ 'किं मह जहाणुबंधो इमंमि, किमिमस्स । मह विसए वि तह च्चिय अणुराओ ताय! संभविही ?' ||८४५९।। तो कहइ जक्खराया नीसेसं पुव्ववइयरं तीए । जह दुग्गगहणपुव्वं विवाहकज्जं करिस्सामि ॥८४६०।। जह एत्थ दोवि पत्ता अम्हे जह निज्जिओ य पडिवक्खो । जह तुहवइयरसवणेण मुच्छिओ विलविओ एसो ।।८४६१।। इयमाइ वित्थरेणं कहियं जक्खेण रायधूयाए । तं सोऊण पहिट्ठा पुलं(ल)यंगी चिंतइ कुमारी ।।८४६२।। 'धन्नं अहव अवन्नं अप्पं मन्नामि दोहिं हेऊहिं । कुमराणुकूलिमाए कुमरदुहुप्पायणेणं व ॥८४६३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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