Book Title: Siribhuyansundarikaha
Author(s): Sinhsuri, Shilchandrasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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७८२
सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पणमंति वीरसेणं सूरनरिंदाइणो य मुणिचंदे । नमिऊण विसुद्धाए धराए हिट्ठा ओ(उ)वविसंति ||८५७४।। एत्थंतरंमि जक्खो बहुजक्खिणि-जक्खपरियणसमेओ । सविसेसुज्जलनेवत्थभुवणसुंदरीए समं आओ ।।८५७५।। काऊण भत्तिसारं केवलिमहिमं च वीरकेवलिणो । कयभत्तिपयपणामो उवविठ्ठो सुद्धवसुहाए ||८५७६।। अह भुयणसुंदरी वि य पिउब्भ(भ)त्तिभरुल्लसंतरोमंचा । रूवालोयणविम्हियसुर-असुरगणेहिं दीसंती ।।८५७७।। काऊण पिउ-पियामह-मायामहबहुविभूइपयपूयं । पणमइ वसुहायललुलियकेसपासा य संथुणइ ॥८५७८।। 'जय सयलतिलोयएकल्लवीर! पणमामि तुम्ह पयकमलं । वीर त्ति नियं नामं जेण जहत्थत्तयं नीयं ।।८५७९।। मन्नामि कयत्थं चिय अप्पाणं तुम्ह दंसणे नाह! । एण्हि तदुत्तरोत्तरगुणा वि मह संभविस्संति ||८५८०।। संछाइयजियलोओ घणो व्व अंतरियगुरुबहुपयासो । सो देव! तए मोहो पयंडपवणेण व निसिद्धो ||८५८१॥ हरि-हर-विरिंचिणो वि हु जेहिं समत्थेहिं विनडिया नाह! । ते राग-दोसमल्ला सुदुज्जया निज्जिया तुमए ॥८५८२॥ देव ! कसाया विरसा फरज्झवसायरक्खसावासा । अक्खतरुणो व्व तुमए निच्छिन्ना परसुरूवेण ।।८५८३।। अइविसमजोव्वणवणे अवायबहुलंमि इंदियकुरंगा । संतोसवागुराए तुमए चिय नाह! संजमिया ।।८५८४॥ .
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