Book Title: Siribhuyansundarikaha
Author(s): Sinhsuri, Shilchandrasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥
पच्छाकयबाहुवसा भग्गुन्नइपिहुलजायथणवढे । तं बंधइ वरनारिं नरकेसमयाए रज्जूए ।८३८७।। दिट्ठ(ढ)यररज्जुनिबंधणपीडावसरोइरिं अलक्खंगो । दटुं नारिं कुमरो छिन्नइ छुरियाए तब्बंधे ॥८३८८।। अह पुरिसवसापज्जलियदीवसंजायमंडवुज्जोओ । निव्वत्तइ नीसेसं भैरवपूयाविहिं पढमं ॥८३८९।। तो निव्वत्तियपूओ समागओ कन्नयासमीवंमि । पहावइ कन्नं तह रत्तचंदणेणं पि लिंपेइ ।।८३९०॥ रत्तकणवीरमालं बंधइ सीसंमि तीए बालाए । उग्गाहइ अच्चुग्गं गुग्गुलधूवं च कावाली ।।८३९१।। तो कड्डइ विकरालं हट्टच्छरुभीसणं(?) निसियकत्तिं । पुण भणइ चंडरुद्दो ‘बद्धा सि मए कहं छुट्टा ?' ||८३९२।।
अह सो अदिन्नपडिउत्तरं च बालं भणेइ अइकुद्धो । _ 'सुमरसु तमिट्ठदेवं सरणं वा जासु कस्साऽवि' ||८३९३।।
सा भणइ ‘मए सरिओ चंदप्पहजिणवरो परमदेवो । पंचनमोकारं पिव मरणंते तं पि सुमरामि ।।८३९४।। सो चेव मज्झ सरणं भवे भवे जिणवरो य नवकारो । बीओ भुयणसरन्नो सरणं हरिविकुमकुमारो' ॥८३९५।। तं तिस्सा सुहवयणं सोउं कावालिओ गुणद्देसी । रोसफुरियाअ(s)हरोहो अह बालं भणिउमाढत्तो ॥८३९६॥ 'आ वैधम्मिणि! पावे! चंदप्पहसुमरणेण एण्हि पि । नवकारमंतआकर(रि)सियं व तुह आगयं मरणं ||८३९७।।
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