Book Title: Siribhuyansundarikaha
Author(s): Sinhsuri, Shilchandrasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो तीए निच्छयत्थं पुणो वि अन्नो सुरो इमं पुट्ठो । सो भणइ ‘किं पयंपसि ? अन्नत्थ पसत्तचित्तो सो' ।।८०४६।। तो जायनिच्छयाए ‘हा ! किमिमं वज्जवडणदुव्विसहं ?' । मुच्छानिमीलियच्छी निच्चेट्ठा पडइ धरणीए ।।८०४७।। 'दुक्खोहमोत्थरंतं खणं खलेमि त्ति सामिणीए अहं' । सुहडो व्व पुरो थक्कइ मणब्भवो निहयचेयन्नो ||८०४८।। नीसहनिवडियदेहा असमंजसलुलियकुंतलकलावा । अजहट्ठियआहरणा सव्वंगावयवविच्चेट्ठा ।।८०४९।। कंठमि कुसुममाला कबरीबंधाउ कह वि आलग्गा । गाढीकयमयरद्धयपासेण कय व्व निचे(च्चे)ट्ठा ॥८०५०।। हिययनिहित्तेककरा दुसहपियविरहफुडणभयभीया । धरइ व्व चंपिऊणं नियहिययं कोमलकरेण ।।८०५१।। विलुलंतकेसपासंतसिरनिहित्तग्गललियकरकमला । हढकेसकड्डिराओ जमाओ छोडेइ अप्पं व ।।८०५२।। चंदविउत्ता सुतमा मिलाणमुहकमलकुवलयदलच्छी । कस्स न भयं पयासइ निस व्व सा खुद्दसंगकयं ? ||८०५३।। इय तं तहासरूवं दटुं मुच्छानिमीलियच्छिउडं । कयहाहारवसद्दो आओ सव्वो सहीवग्गो ।।८०५४।। का वि हरिचंदणेणं सिंचइ झणज्झणिरकंकणकरग्गा । नयणंसुबिंदुदंतुरउक्खेवेणं च विजेइ ।।८०५५।। अन्ना वि गुरुपयोहरल्हसियं संठवइ पवरदेवंगं । उच्चल्लिऊण कुमरिं उच्छंगे ठवइ अन्ना वि ।।८०५६।।
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