Book Title: Siribhuyansundarikaha
Author(s): Sinhsuri, Shilchandrasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text
________________
सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥
तो विविहजक्खविलया समूहदुल्लभमंडवपवेसं । ण्हवणारंभसमुत्थयहल्लप्फलजक्खपरिवारं ॥ ७९२५ ।। सिरिबद्धकुसुममाला चंदणचच्चिक्किया कमलपिहिया । गंधुदयपुन्नकलसा जिणस्स पुरओ ठविज्जति ॥ ७९२६ ॥ दूरदियंतरपसरियपरिमल आहूयभमरवंद्राहिं ।
सुसुयंधकुसुममालाहिं पूरिया पडलया एंति ।।७९२७।। अइबहलजक्खकद्दम-हरिचंदणभरियकणयकच्चोला । आणिज्जंति जिणेसरविलेवणत्थं सुरगणेहिं ॥ ७९२८ ॥ मंडवगब्भहरंतर ठाणट्ठाणेसु परिनिहित्ताओ । दीसंति सुरहिधूवुग्गमाओ इह धूवहडियाओ ।।७९२९ ॥ अप्फालिज्जइ पडुपडह-झल्लरी- करड - ट्टट्टरि (?)सणाहो । गंभीरभेरि-दुंदुहि-घण-घंटा -टिविलिनिग्घोसो ||७९३०|| कलकणिरकाहलारवअसंखसंखुल्लसंतताररवो । कंसाल- मुरव-मद्दल-मउंद - बहुतूरसंमद्दो ॥ ७९३१ ॥ पारंभिज्जइ पुरओ जिणस्स सविलासलासमणहरणं । करचलणकणिरकंकणझणझणारावरमणीयं ॥ ७९३२ ॥
थरहरियनियंबत्थल-रणंतकंचीकलावकलसद्दं ।
चलचलणनेउरझुणिमिलंतलय-तालगंभीरं ।।७९३३ ।। पेच्छणयं पेच्छयजणजणियमहाणंदवड्डिउल्लासं । नच्चिरवारविलासिणिललिओब्भडनट्टमणहरणं ॥ ७९३४ ||
करकलियचडुलचमरा पासेसु परिट्टिया जिनिंदस्स । सिरिभुयणसुंदरी अइमहिड्डिबहुजक्खिणिसमेया ।।७९३५ ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
७२३
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838