Book Title: Siribhuyansundarikaha
Author(s): Sinhsuri, Shilchandrasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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७०८
सिरिभुयणसुंदरीकहा। तो भणइ जक्खराया नियपरिवार विसुद्धनेहेण । विणओनमंतसिरधरियपाणिसंघडियकरकोसा(सं?) ७७६०।। 'देवि व्व सामिणी वा जणणि व्व गुरु व्व भुयणपुज्ज व्व । परमप्पयं व एसा दट्ठव्वा निव्वियप्पेहिं ॥७७६१।। एसा हि सयलपुहईसरस्स सिरिवीरसेणरायस्स । हियएकुपिया भज्जा महासई विमलसीलड्ढा ॥७७६२।। आणीया केण वि खेयरेण चिरवेरमणुसरंतेण । मलयसिहरंमि ठविउं हढेण भोत्तुं समाढत्ता ॥७७६३।। तो नियनिम्मलकुल-सील-कित्ति-परलोय-धम्मरक्खटुं । । मलयसिहराओ अप्पा पवाहिओ निव्विसंकाए ।।७७६४।। तो कम्मधम्मजोगा इमीए सुहपुन्नकरिसियेण मए । कोमलकरंजलीए पडिच्छिया इह य आणीया ॥७७६५।। ता धन्ना कयपुन्ना पवित्तदेहा य चित्तचरिया य । जत्थेसा वसइ सई तं पि पवित्तं भवे ठाणं ॥७७६६।। जो हु अखंडियसीलो जिणधम्मनिलीणमाणसो होई । अच्छउ ता इयरजणो देवा वि हु तस्स पणमंति ॥७७६७।। सीलं चिय चारित्तं सीलं च तवो गुणा य सीलं च । सीलपरिवज्जियाणं न तवो न गुणा न चारित्तं ।।७७६८।। अविरयमणाण जम्हा देवाण वि दुल्लहं भवे सीलं । कह तं परिवालंतो न वंदणीओ सुराणं पि ।।७७६९।। सुलहाइं रयण-मणिमयविविहाभरणाई एत्थ भुयणमि । एयं चिय जयदुलहं सीलाहरणं परं एक्कं ।।७७७०।।
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