Book Title: Siddhachakra Mmahapujan Vidhi
Author(s): Arvindsagar
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री सिद्धचक्र महापूजन विधि खारिकाख्यफलान्यष्ट-चत्वारिंशत्सु लब्धिषु । जयादिषु च जंभीरी-फलान्यष्टौ तु योजयेत् ।।११।। गुर्वादिपादुकास्वष्टौ, दाडमीनां फलानि च। चक्राधिष्ठायके चैकं, न्यसेत् कुष्माण्डमुत्तमम् ।।१२।। यक्षादिषु चतुःषष्टि-पदेषु क्रमुकावलिम्। नवाक्षोटफलानीह, निधिस्थानेषु कल्पयेत् ।।१३।। ग्रहेभ्यो ग्रहवर्णानि, फलानीहोपढौकयेत्। चतुर्यो द्वारपालेभ्यो, बलिकूटाँश्च पीतभान् ।।१४।। वीरेभ्यस्तिलवर्तेश्च, देयं कूटचतुष्टयम् । दिक्पालेभ्यश्च तद्वर्ण-बलिपिण्डफलादिकम् ।।१५।। ही कारकलशाकारा, रेखा भूमण्डलस्य च। धान्येनैव विशुद्धेन, तत्तद्वर्णेन साधयेत् ।।१६।। ततः श्रीसिद्धचक्रस्य, पटस्थप्रतिमादिषु । कृत्वा पञ्चामृतस्नात्रं, पूजां चैव सविस्तराम् ।।१७।। सबृहद्वृत्तपाठं च, विहिते मण्डलार्चने। गुरौ तपोविधातॄणां, कुर्वाणे चोपबृंहणाम् ।।१८।। मुख्येन्द्रोऽपि समादाय, पीठान्नवसराः स्वजः । तपःकर्तृपुरो भूत्वा, प्राह प्राञ्जलिरीदृशम् ।।१९।। धन्याश्च कृतपुण्याश्च, यूयं यैर्विहितं तपः । एतत्तपःप्रभावाच्च, भूयाद् वो वाञ्छितं फलम् ।।२०।। For Private And Personal Use Only

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