Book Title: Siddhachakra Mmahapujan Vidhi
Author(s): Arvindsagar
Publisher: Arunoday Foundation
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श्री सिद्धचक्र महापूजन विधि द्वितीयपदमाराध्य, ध्यायन्तः पञ्चपाण्डवाः । सिद्धाचले समं कुन्त्या, संप्राप्ताः परमं पदम् ।।१६।। नास्तिकः कृतपापोऽपि, यत् प्रदेशी सुरोऽभवत् । तदस्यैव तृतीयस्य, पदस्योपकृतं महत् ।।१७।। चतुर्थपदमस्यैवा-राधयन्तो यथाविधि। धन्याः सूत्रमधीयन्ते, शिष्याः सिंहगिरेरिव ।।१८।। विराध्याराध्य चैतस्य, पञ्चमं पदमेव हि। दुःखं सुखं च संप्राप्ता, रुक्मिणी चाथ रोहिणी।।१९।। षष्ठं पदं च यैरस्य, निर्मलं कलितं सदा। कृष्ण-श्रेणिकमुख्यास्ते, श्लाघनीयाः सतामपि ।।२०।। सप्तमं पदमेतस्य, समाराध्य समाधितः । महाबुद्धिधना जाता, धन्या शीलमती सती ।।२१ ।। पदमस्याष्टमं सम्यग, यदाराद्धं पुरादरात् । तत् श्रीजम्बूकुमारेण, सुखेनाप्तं शिवं पदम् ।।२२।। अस्यैव नवमं शुद्धं, पदमाराध्य सम्मदात् । वीरमत्या महासत्या, प्राप्तं सर्वोत्तमं फलम् ।।२३।। किं बहुक्तेन भो भव्या, अस्यैवाराधकैनरैः। तीर्थकन्नामकर्माऽपि, हेलया समुपाय॑ते ।।२४।।
।।इति श्रीसिद्धचक्राराधनफलचतुर्विंशतिका ।।३।।
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