Book Title: Siddhachakra Mmahapujan Vidhi
Author(s): Arvindsagar
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 49
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५ श्री सिद्धचक्र महापूजन विधि तेऽनर्घा घुसृणादिगन्धविधयः कौम्भास्तु कुम्भाश्च ते, धन्या यान्ति कृतार्थतां जिनपतेः स्नात्रोपयोगेन ये।।१।। कुम्भाः काञ्चनरत्नराजतमया, स्रक्चन्दनैश्चर्चिताः, कर्पूरागरुगन्धबन्धुरतराः, क्षीरोदनीरोदया। भव्यैः स्नात्रकृते जिनस्य पुरतो, राजन्ति राजीकृताः, सार्वाः स्वीयशुभद्धिसङ्गममये, माङ्गल्यकुम्भा इव ।।२।। श्रेणीभूय समुत्थिताः करधृतैः, कुम्भेदग्रे मुदा, भव्या भान्ति जिनस्य मज्जनकृते, पौरन्दरश्रीजुषः । संसारौघमिवोत्तरीतुमनसो-ऽर्हदैवते मानसप्रासादे कलशाधिरोपमिव वा, ते कर्तुकामा इव ।।३।। गीतातोद्योरुनादैः सरभसममरारब्धनाट्यप्रबन्धे, नानातीर्थोदकुम्भै रजतमणिमयैः शातकुम्भैर्जिनः प्राक। मेरोः शृङ्गे यथेन्द्रैः सजयजयरवैर्मज्जितो जन्मकाले, कल्याणीभक्तयस्तं विधिवदिह तथा भाविनो मज्जयन्तु ।।४।। जैने स्नात्रविधौ विधूतकलुषे, विश्वत्रयीपावने, क्षुद्रोपद्रवविद्रवप्रणयिनां, ध्यातं त्वतिप्राणिनाम् । श्रीसङ्घ सुजने जने जनपदे, धर्मक्रियाकर्मठे, देवाः श्रीजिनपक्षपोषपटवः, कुर्वन्तु शान्तिं सदा ।।५।। हाथमां कळशो राखीने आ पांच श्लोकनुं स्तोत्र मधुर-तारस्वरे भणदुं । पछी चार जणाजमणी बाजु अने चार जणा डाबी बाजु अने एक जण सन्मुख ऊभा रही ने नीचे प्रमाणे श्लोक-मंत्र बोलीने स्नात्रकरे. For Private And Personal Use Only

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