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आसायणाए तित्तिसन्नयराए जं किंचि मिच्छाए, मण-दुक्कडाए, वय-दुक्कडाए, काय-दुक्कडाए कोहाए माणाए मायाए लोहाए सव्वकालियाए, सव्वमिच्छोवयाराए, सव्व धम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे देवसिओ' अइयारो कओ तस्स खमासमणो, पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि।
(खमासमणो देने की विधि-इच्छामि खमासमणो का पाठ प्रारम्भ कर जब निसीहि शब्द आवे तब दोनों घटने खडे कर उत्कटुक आसन से बैठे, घुटनों के बीच में दोनों हाथ जोड़े हुए “निसीहि" के पश्चात् 'अहो'-'काय'-'काय'-ये तीन आवर्तन मस्तक नमाकर इस प्रकार दें-कमलमुद्रा में अञ्जलिबद्ध (हाथ जोडकर) दोनों हाथों से गरु-चरणों को स्पर्श करने के भाव से मंद स्वर से 'अ' अक्षर कहना, तत्पश्चात् अञ्जलिबद्ध हाथों को मस्तक पर लगाते हुए उच्च स्वर से 'हो' अक्षर कहना, यह पहला आवर्तन है। इसी प्रकार का....."यं' और 'का.......'य' के शेष दो आवर्तन भी दिये जाते हैं। ___‘वइक्कंतो' के पश्चात् 'जत्ता भे', 'जवणि', 'ज्जं च भे'-ये तीन आवर्तन इस प्रकार दें-कमल-मुद्रा से अञ्जलि बाँधे हुए दोनों हाथों से गुरुचरणों को स्पर्श करने के भाव से मन्द स्वर में 'ज' अक्षर कहना चाहिए। पुन: हृदय के पास अञ्जलि लाते हुए मध्यम स्वर से 'त्ता' अक्षर कहना तथा फिर अपने मस्तक को छूते हुए उच्च स्वर से 1. सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में बोलना चाहिए-संवच्छरो वइक्कतो, संवच्छरियं वइक्कम,
संवच्छरियाए आसायणाए, संवच्छरिओ अइयारो।
{19) श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सत्र