________________ जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में जघन्य (कम से कम) चार तीर्थङ्कर, धातकी खण्ड द्वीप के दोनों महाविदेह क्षेत्रों में 8 और पुष्करार्द्ध द्वीप के दोनों महाविदेह क्षेत्रों में 8 इस प्रकार अढ़ाई द्वीप में कुल मिलाकर जघन्य 20 विहरमान तीर्थङ्कर समकालीन अवश्यमेव सदा ही विद्यमान रहते हैं। यदि अधिक से अधिक हो तो पाँचों महाविदेह क्षेत्र की सभी 160 विजयों में एक साथ एक-एक तीर्थकर हो सकते हैं। जिससे 160 तीर्थङ्कर होते हैं। यदि उसी समय में अढ़ाई द्वीप के पाँच भरत और पाँच ऐवत इन दस क्षेत्रों में भी प्रत्येक में एक-एक तीर्थङ्कर हों तो कुल मिलाकर 160 + 10 = 170 तीर्थङ्कर जी उत्कृष्ट रूप में एक साथ हो सकते हैं। प्र. 90. सिद्धों के 14 प्रकार कौन-कौन से हैं ? उत्तर स्त्रीलिङ्ग सिद्ध, पुरुषलिङ्ग सिद्ध, नपुंसकलिङ्ग सिद्ध, स्वलिङ्ग सिद्ध, अन्यलिङ्ग सिद्ध, गृहस्थलिङ्ग सिद्ध, जघन्य अवगाहना, मध्यम अवगाहना, उत्कृष्ट अवगाहना वाले सिद्ध, उर्ध्व लोक से, मध्य लोक से, अधो लोक से होने वाले सिद्ध, समुद्र में तथा जलाशय में होने वाले सिद्ध। इनका कथन उत्तराध्ययन सूत्र के छत्तीसवें अध्ययन की गाथा 50-51 में है। प्र. 91. चौथे आवश्यक में कभी बायाँ, कभी दायाँ घुटना ऊँचा क्यों करते हैं? उत्तर चौथा प्रतिक्रमण आवश्यक है। इसमें व्रतों में लगे हुए अतिचारों की आलोचना एवं व्रत-धारण की प्रतिज्ञा का स्मरण किया जाता है। व्रतों की आलोचना के लिए मन-वचन-काया से (128) श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सत्र