Book Title: Shravak Samayik Pratikraman Sutra
Author(s): Parshwa Mehta
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 144
________________ प्रतिक्रमण का फल प्रश्न- पडिक्कमणेणं भंते! जीवे किं जणयइ? उत्तर- पडिक्कमणेणं वय-छिद्दाई पिहेइ। पिहिय-वय-छिद्दे पुणजीवे निरुद्धासवे असबलचरित्ते, अट्ठसु पवयणमायासु उवउत्ते अपुहत्ते सुप्पणिहिए विहरइ। उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन 29, सूत्र 11 प्रश्न-भगवन् ! प्रतिक्रमण से जीव को क्या प्राप्त होता है ? उत्तर-प्रतिक्रमण से यह जीव ग्रहण किये हुए अहिंसादि व्रतों में अतिचार रूप जो छिद्र हैं, उन्हें ढाँकता है, अर्थात्व्रतों में लगे हुए अतिचारादि दोषों से स्वयं को बचाता है। व्रतों को अतिचारादि दोषों से रहित करके आस्रवों (नये आते हुए क्रमों को) को रोकता है, अपने चारित्र को कलुषित नहीं होने देता, अर्थात्-शुद्ध, चारित्र युक्त होकर वह पाँच समिति और तीन गुप्ति रूप आठ प्रवचन माताओं के आराधन में सावधान हो जाता है, फिर चारित्र से अपृथक्-एक रूप होकर, संयम मार्ग में समाहित-चित्त होकर विचरता है।

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