Book Title: Shravak Samayik Pratikraman Sutra Author(s): Parshwa Mehta Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal View full book textPage 145
________________ ज्ञान-दर्शन-चारित्र में प्रमादवश जो दोष (अतिचार) लगे हों, उनके कारण जीव स्वस्थान से परस्थान में (संयम से असंयम में) गया हो, उससे प्रतिक्रम करना-वापिस लौटना-उन दोषों (या स्वकृत अशुभ योगों) से निवृत्त होना प्रतिक्रमण कहलाता है।Page Navigation
1 ... 143 144 145 146