________________ पहली बार गुरु के अवग्रह (गुरु के समीप देह प्रमाण क्षेत्र) में प्रवेश करके निकलने की एवं दूसरी बार अवग्रह में प्रवेश करने एवं नहीं निकलने की विधि बतलाई है। श्री समवायांग सूत्र में वंदन विधि में इसी प्रकार निर्देश है। प्र. 88. वन्दना किसे कहते हैं? उत्तर क्षमा आदि गुणों के धारक साधुओं को आवर्तन देना, पंचांग नमाकर वन्दना करना, उनके चरण स्पर्श करना, उनकी चारित्र सम्बन्धी समाधि तथा शरीर, इन्द्रिय, मन सम्बन्धी सुख साता पूछना, उनके प्रति जाने-अनजाने में हुई आशातना का पश्चात्ताप करना आदि 'वन्दना' है। प्र. 89. प्रथम पद की वन्दना में जघन्य बीस तथा उत्कृष्ट एक सौ साठ तथा एक सौ सित्तर तीर्थङ्करजी की गणना किस प्रकार की गई है? उत्तर महाविदेह क्षेत्र पाँच हैं-एक जम्बूद्वीप में, दो धातकी खण्ड में और दो अर्धपुष्कर द्वीप में। प्रत्येक महाविदेह क्षेत्र के मध्य में मेरूपर्वत है। इसके मध्य में आने से पूर्व व पश्चिम की अपेक्षा दो-दो भेद हो जाते हैं। पूर्व महाविदेह के मध्य में सीता नदी और पश्चिम महाविदेह के मध्यम में सीतोदा नदी आ जाने से एक-एक के पुन: दो-दो विभाग हो जाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक के चार विभाग हो गये। इन चारों विभागों में आठ-आठ विजय हैं। अत: एक महाविदेह में 8x4 = 32 विजय तथा 5 महाविदेह में 32x5 = 160 विजय हैं। {127} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र