Book Title: Shravak Samayik Pratikraman Sutra
Author(s): Parshwa Mehta
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 140
________________ 4. पौषध के निमित्त शरीर की सुश्रूषा करे। 5. पौषध के निमित्त आभूषण पहने। 6. पौषध के निमित्त सरस आहार करे। पौषध में अव्रती से वैयावृत्त्य करावे। 8. पौषध में शरीर का मैल उतारे। 9. पौषध में बिना पूँजे शरीर खुजलावे। 10. पौषध में अकाल में निद्रा लेवे। 11. पौषध में वस्त्र धोवे या धुलवावे। 12. पौषध में प्रहर रात्रि बीतने से पहले सोवे व रात्रि के अंतिम प्रहर में उठकर धर्म जागरण नहीं करे। 13. पौषध में बिना पूँजे घऊमे और परठे। 14. पौषध में निंदा, विकथा, हँसी-मजाक करे। 15. पौषध में स्वयं डरे और दूसरों को डरावे। 16. पौषध में कलह करे। 17. पौषध में संसारी बातों की चर्चा करे। 18. पौषध में खुले मुँह अयतना से बोले। काका, मामा आदि संबंधियों को इन शब्दों से संबोधित करे। उपर्युक्त 18 दोषों में से प्रथम छ: दोष पौषध करने से पहले दिन लगते हैं और शेष पौषध के दिन में। आत्म-शांति का पोषण करने के कारण इस व्रत का नाम पौषध है। पौषध की क्रिया साधुता के जीवन के नजदीक ले जाने वाली है। पौषध का उत्तम प्रकार से पालन करने वाला अपने जीवन को प्रशस्त बना लेता है। (138) श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र

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