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अकप्पो, अकरणिज्जो
दुज्झाओ, दुव्विचिंतिओ
अणायारो, अणिच्छियन्वो
असावगपाउगो नाणे तह दंसणे
चरित्ताचरित्ते, सु
सामाइए
हिं
चउन्हं कसायाणं
पंचणुव्वाणं तिण्हं गुणव्वयाणं
चउन्हं सिक्खावयाणं
अकल्पनीय (नहीं कल्पे वैसा), नहीं करने योग्य कार्य किए हों, (ये कायिक, वाचिक अतिचार हैं, इसी प्रकार ।)
जो मे देवसिओ
अइयारो कओ
तस्स मिच्छामि दुक्कडं
मन से कर्म बंध हेतु रूप दुष्ट ध्यान व किसी प्रकार का खराब चिंतन किया हो । अनाचार सेवन (व्रत भंग) किया व नहीं चाहने योग्य की वांछा की हो।
श्रावक-धर्म के विरूद्ध आचरण किया हो । ज्ञान तथा दर्शन एवं
श्रावक धर्म, सूत्र सिद्धान्त, सामायिक में ।
तीन गुप्ति के गोपनत्व का।
चार कषाय के सेवन नहीं करने की प्रतिज्ञा
का ।
पाँच अणुव्रत ।
तीन गुणव्रत ।
चार शिक्षा व्रत रूप ।
बारस - विहस्स सावग-धम्मस्स बारह प्रकार के श्रावक-धर्म का ।
जं खंडियं जं विराहियं
जो मेरे द्वारा देश रूप से खण्डन हुआ हो,
सर्व रूप से विराधना हुई हो तो ।
जो मैंने दिवस सम्बन्धी ।
कोई अतिचार दोष किये हों तो
वे मेरे दुष्कृत कर्मरूप पाप मिथ्या हो ।
{59} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र