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सामायिक के बत्तीस दोष
मन के दस दोष अविवेग-जसोकित्ती, लाभत्थी गव्व-भय-नियाणत्थी। संसय-रोस-अविणओ, अबहमाण ए दस दोसा भणियव्वा।। अविवेक दोष
विवेक नहीं रखना। यशोवांछा दोष यशकीर्ति की इच्छा करना। लाभ वांछा दोष धनादि के लाभ की इच्छा करना । गर्व दोष
गर्व करना। भय दोष
भय करना। निदान दोष
भविष्य के सुख की कामना करना । संशय दोष
सामायिक के फल की प्राप्ति में सन्देह
करना। रोष दोष
क्रोध करना। अविनय दोष
देव, गुरु, धर्म की अविनय आशातना करना। अबहुमान दोष
भक्तिभावपूर्वक सामायिक न करना।
वचन के दस दोष कु वयण-सहसाकारे, सच्छंदं संखेव-कलहं च । विगहा विहासोऽसुद्धं, निरवेक्खो मुणमुणा दोसा दस ।। कुवचन दोष
बुरे वचन बोलना। सहसाकार दोष बिना विचारे बोलना। स्वच्छन्द दोष
राग-रागनियों से सम्बन्धित गीत गाना। संक्षेप दोष
पाठ और वाक्यों को छोटे करके बोलना। कलह दोष
क्लेशकारी वचन बोलना। विकथा दोष
स्त्रीकथा, भोजन कथा, देश कथा और राजकथा इन चार विकथाओं में से कोई
विकथा करना। हास्य दोष
हँसी-ठठ्ठा करना।
{86} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र