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1. जीवों को अभयदान मिलता है। 2. अहिंसा व्रत का पालन होता है। 3. पेट को विश्राम मिलता है। 4. मनुष्य बुद्धिमान और निरोग बनता है। 5. दुर्व्यसनों से बच जाता है। 6. मन और इन्द्रियाँ वश में हो जाती हैं। 7. सुपात्र दान का लाभ मिलता है। 8. प्रतिक्रमण, स्वाध्याय आदि का लाभ मिलता है।
9. आहारादि का त्याग होने से कर्मों की निर्जरा होती है। प्र. 64. कौनसा मद किसने किया? उत्तर जाति मद
हरिकेशी ने पूर्वभव में। कुल मद
मरीचि ने बल मद
श्रेणिक महाराज ने रूप मद
सनत् कुमार चक्रवर्ती ने तप मद
कुरगडु ने पूर्वभव में लाभ मद
सुभूम चक्रवर्ती ने श्रुत मद
स्थूलिभद्र ने ऐश्वर्य मद - दशार्णभद्र राजा ने प्र. 65. पौषध में किनका त्याग करना आवश्यक है? उत्तर पौषध में चारों प्रकार के सचित्त आहार का, अब्रह्म-सेवन का,
स्वर्णाभूषणों का, शरीर की शोभा-विभूषा का, शस्त्र-मूसलादि
का एवं अन्य सभी सावध कार्यों का त्याग करना आवश्यक है। प्र. 66. पौषध कितने प्रकार के हैं?
1191 श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सत्र