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प्र. 77. बारहवें व्रत में करण योग क्यों नहीं है ?
उत्तर
प्र. 78.
उत्तर
प्र. 79.
उत्तर
प्र. 80. उत्तर
बारहवें व्रत में साधु-साध्वी को चौदह प्रकार की निर्दोष वस्तुएँ देने तथा भावना भाने का उल्लेख है । पापों के त्याग का वर्णन नहीं होने से इसमें करण-योग की आवश्यकता नहीं है। बारह व्रतों में मूल व्रत कितने और उत्तर व्रत कितने हैं ? पाँच अणुव्रत मूल व्रत हैं, क्योंकि वे बिना सम्मिश्रण के बने हुए हैं। शेष व्रत उत्तर व्रत हैं, क्योंकि वे मूल व्रतों के सम्मिश्रण से या उन्हीं के विकास से बने हैं।
'संलेखना' किसे कहते हैं ? जीवन का अन्तिम समय आया जान कर कषायों एवं शरीर को कृश करने के लिए जो तप-विशेष किया जाता है, उसे संलेखना कहते हैं। संलेखना कर 'संथारा' ग्रहण किया जाता है संधारा अपनी शक्ति, सामर्थ्य एवं परिस्थिति के अनुसार तिविहार अथवा चौविहार दोनों प्रकार से किया जा सकता है। मारणांतिक संथारे की विधि क्या है?
संथारे का योग्य अवसर देखकर साधु-साध्वीजी की सेवा में या साधु-साध्वियों का सान्निध्य प्राप्त नहीं होने पर अनुभवी श्रावक-श्राविका के सम्मुख अपने व्रतों में लगे अतिचारों की निष्कपट आलोचना कर प्रायश्चित्त ग्रहण करना चाहिए पश्चात् कुछ समय के लिए या यावज्जीवन के लिए आगार सहित अनशन लेना चाहिए। इसमें आहार और अठारह पाप का तीन करण - तीन योग से त्याग किया जाता है। यदि किसी का संयोग नहीं मिले तो स्वयं भी आलोचना कर संलेखना तप
{124} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र