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उत्तर
प्र. 60.
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संवर-निर्जरा युक्त शुभ कार्य में यत्न-उद्यम न करने को प्रमाद कहते हैं। अथवा आत्म-स्वरूप का विस्मरण होना प्रमाद है। प्रमाद के पाँच भेद हैं-(1) मद्य (2) विषय (3) कषाय (4) निद्रा (5) विकथा। ये पाँचों प्रमाद जीव को संसार में पुन: पुन: गिराते-भटकाते हैं। रात्रि-भोजन-त्याग को बारह व्रतों में से किस व्रत में सम्मिलित किया जाना चाहिए? रात्रि-भोजन-त्याग को दसवें देसावगासिक व्रत के अन्तर्गत लेना युक्तिसंगत लगता है। दसवाँ व्रत प्राय: छठे व सातवें व्रत का संक्षिप्त रूप-एक दिन-रात के लिए है। अत: जीवन पर्यन्त के रात्रि-भोजन-त्याग को सातवें व्रत में तथा एक रात्रि के लिए रात्रि-भोजन-त्याग को दसवें व्रत में माना जाना चाहिए। रात्रि-भोजन-त्याग श्रावक-व्रतों के पालन में किस प्रकार सहयोगी बनता है? रात्रि-भोजन-त्याग श्रावक-व्रतों के पालन में निम्न प्रकार सहयोगी बनता है1. रात्रि-भोजन करने वाले गर्म भोजन की इच्छा से प्राय:
रात्रि में भोजन सम्बन्धी आरम्भ-समारम्भ करते हैं। रात्रि में भोजन बनाते समय त्रस जीवों की भी विशेष हिंसा होती है, रात्रि-भोजन-त्याग से वह हिंसा रुक
जाती है। 2. माता-पिता आदि से छिपकर होटल आदि में खाने की
आदत छूट जाती है तथा झूठ भी नहीं बोलना पड़ता। {117) श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र
प्र. 61.
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