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देते समय कम तौलकर देना, कम माप कर देना, इसी प्रकार कम गिनकर देना या खोटी कसौटी लगाकर कम देना। लेते समय अधिक तौलकर, अधिक मापकर, अधिक गिनकर तथा
स्वर्णादि को कम बताकर लेना आदि। प्र. 52. ब्रह्मचर्य किसे कहते हैं? उत्तर ब्रह्मचर्य-ब्रह्म अर्थात् आत्मा और चर्य का अर्थ है-रमण करना।
यानी आत्मा के अपने स्वरूप में रमण करना ब्रह्मचर्य है। इन्द्रियों और मन को विषयों में प्रवृत्त नहीं होने देना, कुशील से बचना, सदाचार का सेवन करना, आत्म-साधना में लगे रहना
व आत्म-चिन्तन करना 'ब्रह्मचर्य है। प्र. 53. ब्रह्मचर्य-पालन के लिए किस प्रकार का चिन्तन करना
चाहिए? उत्तर ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तप है। ब्रह्मचारी को देवता भी नमस्कार करते
हैं। काम-भोग किंपाक फल और आशीविष के समान घातक हैं। ब्रह्मचर्य के अपालक रावण, जिनरक्षित, सूर्यकान्ता आदि की कैसी दुर्गति हुई? ब्रह्मचर्य के पालक जम्बू, मल्लिनाथ, राजीमती आदि का जीवन कैसा उज्ज्वल व आराधनीय बना,
आदि चिन्तन करना चाहिए। प्र. 54. परिग्रह किसे कहते हैं? उत्तर किसी भी व्यक्ति एवं वस्तु पर मूर्छा, ममत्व होना परिग्रह है।
खेत, घर, धन, धान्य, आभूषण, वस्त्र, वाहन, दास, दासी, कुटुम्ब, परिवार आदि का संग्रह रखना बाह्य परिग्रह है व क्रोधमान-माया-लोभ-ममत्व आदि करना आभ्यन्तर परिग्रह है।
{115) श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र