Book Title: Shravak Samayik Pratikraman Sutra
Author(s): Parshwa Mehta
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 122
________________ उत्तर प्र. 67. उत्तर पौषध दो प्रकार के हैं-(1) प्रतिपूर्ण और (2) देश पौषध। जो पौषध कम से कम आठ प्रहर के लिए किया जाता है, वह प्रतिपूर्ण पौषध कहलाता है तथा जो पौषध कम से कम चार अथवा पाँच प्रहर का होता है, वह देश पौषध कहलाता है। देश पौषध यदि चौविहार उपवास के साथ किया है तो ग्यारहवाँ पौषध और यदि तिविहार उपवास के साथ किया जाता है तो दसवाँ पौषध कहलाता है। ग्यारहवाँ पौषध कम से कम पाँच प्रहर का तथा दसवाँ पौषध कम से कम चार प्रहर का होता है। दया व्रत को कौन-से व्रत में मानना चाहिये? दो करण तीन योग से सात प्रहर के लिए होने वाले दया व्रत में दिन में अचित्त आहार-पानी सेवन हो सकता है। संवर होने के कारण उसमें 11 सामायिक का लाभ बताया है। तथा सात प्रहर में लगभग 11 सामायिक और करने से वह लाभ 22 सामायिक या अधिक का हो जाता है। चार प्रहर के 10वें पौषध में 25 सामायिक का लाभ मिलता है। उसमें दिन भर उपवास व रात्रिकालीन संवर की साधना रहती है। जबकि दया में सात प्रहर तक संवर की साधना होती है। पर दिन में उपवास नहीं होता है। इन दोनों का अंतर ध्यान में रह सके इसलिए पूर्वाचार्यों ने 'दया' संज्ञा से इसे अभिहित किया। इसकी आराधना में व्रत ग्यारहवाँ ही समझा जाता है। सामायिक व पौषध में क्या अन्तर हैं ? श्रावक-श्राविकाओं की सामायिक केवल एक मुहर्त यानी 48 प्र. 68. उत्तर {1203 श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सत्र

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