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प्र. 21. तिक्खुत्तो के पाठ में 'वंदामि' और 'नमंसामि' शब्दों
का साथ-साथ प्रयोग क्यों किया है? उत्तर तिक्खुत्तो के पाठ में 'वंदामि' का अर्थ है वन्दना करता हूँ और
'नमंसामि' का अर्थ है-नमस्कार करता हूँ। वन्दना में वचन द्वारा गुरुदेव का गुणगान किया जाता है, किन्तु नमस्कार में
पाँचों अंगों को नमाकर काया द्वारा नमन किया जाता है। प्र. 22. तिक्खुत्तो के पाठ में आये हुए 'सक्कारेमि' और
'सम्माणेमि' का क्या अर्थ है ? उत्तर 'सक्कारेमि' का अर्थ है-गुणवान पुरुषों को वस्त्र, पात्र, आहार,
आसन आदि देकर उनका सत्कार करना। 'सम्माणेमि' का
अर्थ है-गुणवान पुरुषों का मन और आत्मा से बहुमान करना। प्र. 23. पर्युपासना कितने प्रकार की होती है? उत्तर पर्युपासना तीन प्रकार की होती है
1. विनम्र आसन से सुनने की इच्छा सहित वन्दनीय के सम्मुख हाथ जोड़कर बैठना, कायिक पर्युपासना है। 2. उनके उपदेश के वचनों का वाणी द्वारा सत्कार करते हुए समर्थन करना, वाचिक पर्युपासना है। 3. उपदेश के प्रति अनुराग
रखते हुए मन को एकाग्र रखना, मानसिक पर्युपासना हैं। प्र. 24. पर्युपासना से क्या-क्या लाभ हैं ? उत्तर सम्यक् चारित्र पालने वाले श्रमण-निर्ग्रन्थों की पर्युपासना
करने से अशुभ कर्मों की निर्जरा होती है और महान पुण्य का उपार्जन होता है।
195) श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र